नई दिल्ली Nov 21, 2014. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने कहा है कि समस्त संसार को मानवता का पाठ पढ़ाने का परंपरा से भारत का दायित्व है, जिसकी आवश्यकता संसार को सदा रहेगी.
परम पूज्य सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत ने यहां 21 नवंबर को वर्ल्ड हिन्दू फाउंडेशन द्वारा आयोजित प्रथम वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में वैश्विक हिन्दू पुनर्अभ्युदय के लिये उपयुक्त समय और हिन्दू समाज के सामूहिक प्रयास विषय पर अपने सारगर्भित मार्गदर्शन में कहा, “ पूज्य दलाई लामा जी ने जिन सरल शब्दों में कहा फेथ, ह्यूमैनिटी, उसकी आवश्यकता तो संसार को सदा थी, सदा है, सदा रहेगी और उसको देने का काम हमको करना है” उन्होंने कहा कि एक समाज, एक राष्ट्र और एक देश के नाते भारत के अस्तित्व का यही प्रयोजन है. इसीलिये पचास से अधिक देशों से हिन्दू के नाते, हिन्दू समाज का विचार करते हुए सम्पूर्ण विश्व को आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान कर सकें- ऐसा रूप हिन्दू समाज को देने के लिये क्या किया जाये, इसका विचार करने के लिये यहां आये हैं.
परम पूज्य ने कहा कि जहां तक उपयुक्त समय की बात है तो समय को तो पकड़ना पड़ता है. उन्होंने इसके लिये एक सटीक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहा, गंगा किनारे के एक गांव में रहने वाला एक नवयुवक बहुत अच्छा तैराक था. दिन में दो-तीन बार गंगा का आलोड़न करता था. उसकी इच्छा सागर में तैरने की हुई. समुद्र तट पर पहुंचकर वह पूरे दिन बैठा रहा, लेकिन वह समुद्र में नहीं उतरा. अंत में सूर्यास्त के पश्चात वापस आने वाले लोगों में से एक ने पूछा कि आप स्नान करने के लिये आये थे, इतनी देर बैठे रहे तो अभी तक स्नान क्यों नहीं किया? युवक का उत्तर था कि सागर में बहुत टर्बुलेंस (ऊंची और तेज लहरों का उठना व गिरना) है, शांत हो जाये तो मैं स्नान करूंगा. उन्होंने कहा कि दुनिया के जीवन में भी समस्यारूपी लहरें तो आती ही रहेंगी, अच्छी-बुरी स्थिति का धूप-छांव का खेल तो चलता रहेगा. उपयुक्त समय वही है जब हम काम शुरू कर दें.
डॉ. भागवत ने इच्छाओं की पूर्णता में संतुलन को परम आवश्यक बताया जो विविधता में एकता का दर्शन करके प्राप्त हो सकता है. उन्होंने कहा कि विकास करने जाते हैं तो पर्यावरण का सफाया करते हैं. पर्यावरण को ठीक करना है तो विकास को रोक देते हैं. व्यक्ति को स्वतन्त्रता देनी है तो परिवार का या समाज का विचार छोड़ देते हैं. समाज का विचार करना है तो व्यक्ति को दबाते हैं.
परम पूज्य ने कहा कि यह संतुलन चूंकि न जड़वादी और कोरे पंथिक विचार से मिला और न ही पूर्ण समाजवादी या पूर्ण व्यक्तिवादी विचार से मिला इसलिये सारी दुनिया के चिंतक 2000 वर्ष तक प्रयोग करते-करते थकने के बाद किसी तीसरे पक्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं. वे अब सोच रहे हैं कि समाधान हिन्दू ज्ञान एवं परम्परा में ही मिलेगा.
हिन्दू और बौद्ध मतों के बंधुत्व पर अपने ओजस्वी उद्बोधन में 14वें परम पावन दलाई लामा ने स्वयं को अच्छा हिन्दू बताते हुए कहा कि दोनों मत आध्यात्मिक भाई हैं. साथ ही, हिन्दू तंत्र और बुद्ध तंत्र में काफी समानतायें हैं. दलाई लामा ने आत्मा और अनात्मा के विषय को नितांत निजी आस्था का मामला बताया.
उन्होंने भारत के प्राचीन ज्ञान एवं पूर्ण विकसित दर्शन को आधुनिक विश्व के लिये अति प्रासंगिक बताते हुए कहा कि यह विश्व को एकसमान मानव होने का बोध कराते हुए धार्मिक विश्वासों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने में पूर्ण समर्थ है. उन्होंने इसके अहिंसा और धार्मिक समरसता के तत्वों को बहुत आवश्यक बताया.
विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक श्री अशोक सिंघल ने अजेय हिन्दू निर्माण के परिषद के संकल्प पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी जो महर्षि अरविंद का जन्म दिन था. महर्षि अरविंद ने कहा था कि केवल राजनीतिक स्वातंत्र्य मिला है. अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक स्वाधीनता के लिये स्वातंत्र्य समर से भी बड़ा संघर्ष करना पड़ेगा. परिषद उसी दिशा में गोरक्षा, गंगा, एकल विद्यालय और श्री राम जन्म भूमि आंदोलन के माध्यम से अजेय हिन्दू शक्ति के निर्माण में जुटी है.
श्री सिंघल ने जब सगर्व यह कहा कि 800 वर्ष बाद पृथ्वीराज सिंह चौहान के बाद हिन्दू स्वाभिमानियों के पास सत्ता आई है तो सारा सभागार करतल ध्वनि से गूंज उठा. उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा कि हिन्दू शक्ति ने संसार में कभी हिंसक रूप नहीं लिया और न कभी लेगी.
विश्व हिन्दू परिषद भारत के संयुक्त महासचिव स्वामी विज्ञानानंद ने विश्व हिन्दू कांग्रेस की आयोजन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. नॉर्दर्न प्रॉविंस, श्रीलंका के मुख्यमंत्री श्री सीवी विग्नेश्वरन ने भी भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को विश्व भर में फैलाने पर जोर दिया.
कार्यक्रम में हिन्दू धर्म आचार्य सभा के संयोजक स्वामी दयानंद सरस्वती अस्वस्थता के कारण उपस्थित नहीं हो सके, लेकिन उनका संदेश पढ़कर सुनाया गया.
प्रबोधन पत्रिका के संपादक श्री शरदेन्दु की पुस्तक प्रबोधन का परम पूज्य सरसंघचालक और परम पावन दलाई लामा ने विमोचन किया. विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष श्री राघव रेड्डी ने डॉ. भागवत और दलाई लामा जी को सम्मानित किया. कार्यक्रम में सरकार्यवाह श्री सुरेश (भय्या) जी जोशी, सहसरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल और दत्तात्रेय होसबाले की उपस्थिति उल्लेखनीय थी. कार्यक्रम का संचालन श्रीमती अपर्णा वास्त्रेय और धन्यवाद ज्ञापन आयोजन समिति के उपाध्यक्ष श्री नरेश कुमार ने किया.