नई दिल्ली Jan 29 : “राष्ट्र सेविका समिति” ने मंथन के नाम से प्रबुद्ध वर्ग के बीच गोष्ठियां आयोजित करना प्रारम्भ किया है. ऐसी ही एक गोष्ठी दिल्ली प्रांत के मेधाविनी मंडल ने शिक्षक के राष्ट्रीय दायित्व विषय पर यहां 27 जनवरी को आयोजित की. इस गोष्ठी में सभी वक्ताओं ने समान आकांक्षा व्यक्त की कि शिक्षक ऐसे छात्रों का निर्माण करें जो राष्ट्र के अनन्य उपासक सिद्ध हों. उनके जीवन में राष्ट्र सर्वोपरि हो. अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका श्रीमती आशा शर्मा जी ने चाणक्य को शिक्षकों के लिये आदर्शतम व्यक्तित्व निरूपित किया. अपने उद्घाटन भाषण में आशा जी ने कहा कि शिक्षकों की भूमिका महान आचार्य चाणक्य जैसी होनी चाहिये जो कि समय के अनुरूप देश का नेतृत्व कर सकें और व्यक्ति व राष्ट्र को उत्थान की ओर ले जा सकें.
उन्होंने कहा कि संगठन की संस्थपिका वंदनीया मौसी जी (लक्ष्मीबाई केलकर) कहती थीं कि समाज का 50 प्रतिशत अंश महिलायें हैं. उनके बेटे संघ शाखा से संस्कार ग्रहण करते थे तो उनको लगता था कि महिला शक्ति भी अपने राष्ट्र का चिंतन करे, नेतृत्व करे, देश के विकास में अपना सम्पूर्ण योगदान दे. इसी प्रेरणा से हिन्दू महिला शक्ति के जागरण हेतु 1936 में “राष्ट्र सेविका समिति” की स्थापना की गई. साथ ही, संकल्प किया गया कि समाज के हर क्षेत्र में नेतृत्व देने की क्षमताओं का विकास किया जाये और उनको संगठित भी किया जाये.
उन्होंने बताया कि राष्ट्र सेविका समिति का कार्य भारत के अलावा 40 देशों में भी चल रहा है. देश में 1028 सेवा प्रकल्प संचालित किये जा रहे हैं, जिनमें परिवार-विहीन, वनवासी क्षेत्र, आतंकग्रस्त क्षे़त्र की बालिकाओं के लिये 40 छात्रावास स्थापित किए गये हैं. इसके अतिरिक्त सिन्धु सृजन नाम से दिल्ली में और दिशा नाम से दक्षिण में छात्राओं के बीच कार्य प्रारम्भ किया गया है. ए. एस. ट्रेनिंग, नि:शुल्क ट्यूशन केन्द्र और वैदिक गणित विषयों से संबन्धित प्रकल्प भी शुरू किए गये हैं.
अध्यक्षता करते हुए साध्वी ऋतम्भरा जी ने कहा कि आजकल जो शिक्षार्थी प्रथम आते हैं, उनकी तरफ ही ध्यान दिया जाता है और अन्तिम पंक्ति वालों को छोड़ दिया जाता है. शिक्षक यदि चाहें तो अपनी व्यवहार शालीनता एवं कड़े परिश्रम से उन्हें भी अगली पंक्ति में ला सकते हैं. न्होंने यह भी कहा कि शिक्षक यदि जीवन-पर्यन्त शिक्षक के साथ शिक्षार्थी भी बना रहे तो वह एक उच्च राष्ट्र निर्माता हो सकता है.
उन्होंने कहा, “आज हमें ऐसे सेवा एवं संस्कारों का अग्नि कुंड बनाने की आवश्यकता है जिसमें जलने वाली लकड़ी (शिक्षार्थी) प्रत्येक देश सेवा रूपी यज्ञ में जल कर भस्म बने. यज्ञ की भस्म को मस्तक पर धारण किया जाता है.” उन्होंने शिक्षकों से लालच में आकर अपने ज्ञान रूपी सरोवर को धूमिल न करने का आह्वान करते हुए कहा, “जो बांटता एवं बंटता है उसे प्रसाद कहते हैं, जो अर्जित करता है उसे विषाद कहते हैं, आओ ज्ञान बांटें, मुझे सबसे उच्च शिखर पर जाना, मुझे दूसरे शिक्षक से अधिक अर्जित करना है यह गलत धारणा है. दो शिखरों अहम और अज्ञानता का मेल कभी नहीं होता.”
शिक्षा बचाओ आंदोलन में अपनी उत्कृष्ट भूमिका के लिये प्रसिद्ध श्री अतुल कोठारी जी ने तीन बार ऊॅं काउच्चारण, तत्पश्चात “ऊँ असतो मा सद्गमय” मंत्र का उच्चारण सभी उपस्थितजनों से कराने के बाद कहा कि शिक्षक इस मंत्र जैसा हो अन्यथा शिक्षा व्यर्थ है. उन्होंने कहा कि शिक्षा एवं जीवन का उद्देश्य एक समान होना चाहिये.
श्री कोठारी ने कहा कि समाज की सभी समस्याओं का कारण चरित्र का संकट है. चिन्तन का विषय यह है कि चरित्र निर्माण कैसे हो? पाठ्यक्रम का निर्माण कैसे हो? पाठ्यक्रमों में श्री रामायण में श्रीराम, सीता जैसे चरित्रों को अपभ्रंश करके बताया गया है, क्या ऐसा पाठ्यक्रम चरित्र निर्माण कर सकता है?
उन्होंने वेदों में उपलब्ध ज्ञान हासिल करने के लिये गंभीर शोध में अब और विलंब को मानव समुदाय के लिये अति घातक बताते हुए कहा कि शोधकर्ता को समाज और राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्ध होना जरूरी है. अमेरिकी शिक्षकों को अनुकरणीय बताते हे उन्होंने कहा कि वे छात्रों को भावी राष्ट्रपति मानकर पढाते हैं .
गोष्ठी में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय की प्रो. वाइसचांसलर श्रीमती सुषमा यादव जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थीं. उन्होंने आदर्श शिक्षक के रूप में नोबल पुरस्कार विजेता प्रख्यात भौतिक विज्ञानी सी.वी. रमन का स्मरण किया. उन्होंने कहा कि सी.वी.रमन को उस दिन भारत रत्न का पुरस्कार मिलना था, जिस दिन उनके एक छात्र का शोध-पत्र पर कार्य का अन्तिम दिवस था. इसलिये उन्होंने पुरस्कार हेतु मना कर दिया. उन्होंने कहा कि अपने शिष्यों के प्रति ऐसा उत्कट दायित्व बोध ही छात्रों में अपने गुरुजनों के प्रति आस्था और आदर की भावना निर्मित कर सकता.