सूरत, गुजरात March 21: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि आज भारतीय कालगणना का नववर्ष आज सूर्योदय के साथ प्रारंभ हो गया है. हमारी कालगणना बहुत प्राचीन है. भारतीय मनीषियों, ज्योतिष और गणितज्ञों के द्वारा यह सब संभव हुआ. काशी में दश्मेश घाट के पास वैदिक शाला में इन सारी गणना के यंत्र है. जिन्हें देख लोग आश्चर्यचकित रह जाते है.
पश्चिम जगत में 10 महीने में साल पूरा होता था. जूलियस सीज़र तथा अगस्तों के नाम पर दो महीने बाद में जोड़े गए. इस तरह वहां भी वर्ष 12 महीनों का होने लगा. परन्तु आज भी उस कैलेंडर में बहुत त्रुटियां है.
आज ही के दिन राम का राज्याभिषेक हुआ था, आर्यसमाज के स्थापक स्वामी दयानंद सरस्वतीजी का आज जन्मदिन है, विक्रमादित्य ने शकों को हराकर विक्रम संवत शुरू किया. ऐसे सैकड़ों श्रेष्ठ पुरुषों का इतिहास आज के दिन से जुड़ा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए आज विशेष दिन है क्योंकि आज ही के दिन पू. डॉक्टर साहब का जन्मदिन है.
डॉक्टर साहब ने स्वयं को प्रसिद्धि से दूर रखा और कहीं भी अपने चिंतन को प्रसिद्द नहीं किया. उन्होंने बताया कि संघ कार्य व्यक्तिनिष्ठ नहीं होना चाहिए, यह कार्य तत्वनिष्ठ एवं ध्येयनिष्ठ होना चाहिए. डॉक्टर साहब ने चिंतन किया कि बाहर से आये आक्रमणकारियों ने इस देश को बहुत कष्ट दिया है. हमने 2500 साल तक इस कष्ट को सहन किया है. आक्रांता विश्व की अनेक सभ्यताओं को नष्ट करते हुए भारत तक पहुंचे थे. डॉक्टर साहब ने इसका गहन विश्वेषण किया कि विश्व को नेतृत्व प्रदान करने वाले हमारे देश की यह दशा क्यों हुई? उन्होंने चिंतन के पश्चात चार आर्य सत्य खोज निकाले.
डॉक्टर साहब ने समाज का विश्लेषण कर पाया कि हिन्दुओं का आत्मबोध समाप्त हो गया था. अंग्रेज सबसे धूर्त थे. विलियम जोन्स ने सुनियोजित योजना के तहत हमारे इतिहास को बदला. भारतीय चिंतन की श्रेष्ठता, हमारे महान पूर्वजों का उल्लेख भी उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से इतिहास से दूर किया. अंग्रेज जहां जहां भी गए, उन देशों की सभ्यता, संस्कृति, त्यौहार, भाषा सबको समाप्त करने के लिए योजनाबद्ध रूप से कार्य करते गए और यही उन्होंने भारत में भी किया. उन्होंने कहा आर्य बाहर से आये थे, आर्यों एवं द्रविड़ों का हमेशा झगडा होता था. इस तरह के अनेक अपप्रचार उन्होंने किये.
डॉक्टर साहब ने एकरस समाज- एक बोध का यह हिन्दू समाज बनाने की दिशा में चिंतन किया. उन्होंने स्कूल, कॉलेज, अस्पताल नहीं खोले, अनाथालय नहीं चलाये, बल्कि उन्होंने कहा कि थोड़े बहुत देशभक्तों से, दो चार महापुरुषों से हमारे देश की समस्या का समाधान नहीं होने वाला. उन्होंने कहा कि लाखों लोगों के जनमानस को देशभक्त बनाना है. तभी हमारा देश पुन: गौरवशाली बन सकेगा.
इसके लिए उन्होंने संघरूपी अभिनव प्रयोग करना प्रारंभ किया और संस्कार सर्जन का कार्य छोटे-छोटे बच्चों से शुरू किया. यही छोटे छोटे बालक बड़े होकर संघ कार्य को बढ़ाने के लिए जम्मू से लेकर केरल तक पहुंच गए जो विश्व परिद्रश्य पर एक अनोखा कार्य था. साथ मिलकर शाखा पर कार्यक्रम करते करते सारे भेद समाप्त कर समरस दिशा में समाज बढ़ने लगा. जहां सारे जातिभेद, प्रांतभेद, भाषाभेद सब समाप्त हो गए. भारत माता की जय बोलते बोलते सभी के मन में यह भाव उत्पन्न हो गया कि मेरा शरीर भारत माता के काम आये.
आज पूरा विश्व देखता है कि संघ जैसे सबसे बड़े संगठन की जिसने रचना की इतिहास में उनका कही स्थान नहीं है. परन्तु संघ कार्य का विराट दर्शन होता है. 50,000 से अधिक शाखाएं आज हैं और एक लाख से अधिक सेवाकार्य संघ के स्वयंसेवक चलाते हैं. स्वयंसेवक स्वाभाविक रूप से सेवा कार्य करते करते संपूर्ण समाज की चिंता करता है. समाज के बाहर गए हिन्दू को पुन: वापस लाने का दायित्व भी हमारा है. दुःख, अपमान के समय जो अन्य धर्मो में चले गए, उनकी घरवापसी का दायित्व भी हमारा है. घर वापसी और शुद्धीकरण के कार्यक्रम 7वीं सदी से चल रहे हैं और इसकी एक लंबी श्रृंखला है. घरवापसी कार्यक्रम करके हम अपने पूर्वजों का ऋण उतारेंगे.
भारत सभी का सम्मान करता है. संविधान निर्माताओं ने संविधान में सेक्युलर शब्द नहीं डाला है क्योंकि वे जानते थे कि भारत ने सभी का सम्मान किया है और यह हिन्दुओं के रक्त में है, लेकिन बाद में यह शब्द संविधान में जोड़ा गया. समाज जीवन में संपूर्ण समरसता करने का कार्य हमारा ही है. जिसे हमें पूर्ण निष्ठा से करना है.
मा. कृष्णगोपालजी (सह सरकार्यवाह) का उद्बोधन दिनांक 21 मार्च, 2015 – वर्ष प्रतिपदा उत्सव सूरत महानगर