- ‘गुरु विनयांजलि’ श्रद्धांजली कार्यक्रम में सरसंघचालक जी के उद्गार।
नागपुर 25 फरवरी।
“अत्यंत कठोर व्रताचरण तथा संपूर्ण वैराग्याचरण करने वाले आचार्य विद्यासागर जी हम सबके मार्गदर्शक तो थे ही, साथ ही वे राष्ट्र की बड़ी पूंजी थे,” इन शब्दों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी ने रविवार दोपहर को आचार्य विद्यासागर जी महाराज के प्रति श्रद्धांजलि अर्पण की।
नागपुर के चिटणीस पार्क में आयोजित श्रद्धांजलि पर कार्यक्रम ‘गुरु विनयांजलि’ में वे बोल रहे थे। उपस्थित नव रत्न जैन संत संघ तथा साध्वी जनों को प्रणाम कर सरसंघचालक जी ने श्रद्धांजलि पर भाषण का आरंभ किया।
“आचार्य विद्यासागर जी से पहली बार भेंट और चर्चा के बाद मेरे ध्यान में आया, कि वे तर्क से तो बात रखते ही थे, उस तर्क के पीछे भी उनका एक सहज आत्मीयता का भाव होता था। हालाकि, मेरी उनकी पहली भेंट हुई थी। लेकिन, संत तो सबको अपना मानते हैं। हम भी यदि संतो की बात मान कर चलें, तो सफलता अवश्य मिलती है,” ऐसा उन्होंने इस अवसरपर कहा।
“उनका नहीं होना मेरे लिए वैयक्तिक हानि की बात है। उनके यहां पास आधा घंटा भी बैठें, तो अगले वर्ष भर मन स्थिर रहता था। ‘स्व से शुरू करो उसी आधार पर उन्नति होती है। अपने देश को भारत कहो इंडिया मत कहो,’ ऐसा उनका सदैव आग्रह होता था।
देश का उत्पादन जनता के द्वारा बढ़ाओ तो उनको रोजगार मिलेगा और देश को लाभ मिलेगा, ऐसा काल सुसंगत मार्गदर्शन एवम् उपदेश उनसे मिलता था। व्यक्तिगत आचरण या राष्ट्र के विषय में उनकी बातें हम सब के लिए आगे के लिए मार्गदर्शन है। उनके जाने से मेरी व्यक्तिगत हानी हुई है, उसका तो कोई उपाय नहीं; लेकिन, हम उनके बताए मार्गदर्शन पर सदैव चलें, तो हमेशा के लिए उन्नति कर सकते हैं। मैं उनकी स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करता हूं,” इन शब्दों में उन्होंने अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की।
हथकरघा प्रणेता, गौ शाला संवर्धक, महायोगी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आजीवन प्रेम, करुणा, सरलता और समता के प्रचारक रहे।