अरब राष्ट्रों में वसंतागम और उसके बाद
खुले मन से यह मान्य करना होगा कि, अरब राष्ट्रों में जनतंत्र की हवाऐं बहने लगी है| इन गतिमान हवाओं को आंधी भी कह सकते है| एक-एक तानाशाही राज ढहने लगा है| प्रारंभ किया ट्यूनेशिया ने| वैसे यह एक-सवा करोड जनसंख्या का छोटा देश है| लेकिन उसने अरब देशों में क्रांति का श्रीगणेश किया| तानाशाह अबीदाईन बेन अली को पदच्युत किया| जनतंत्र की स्थापना की| चुनाव हुए| मतदाताओं ने उस चुनाव में उत्साह से भाग लिया| इस चुनाव ने संविधान समिति का गठन किया| आगामी जून माह में उस संकल्पित संविधान के प्रावधान के अनुसार फिर आम चुनाव होगे|
मिस्र में की क्रांति
ट्यूनेशिया में हुई क्रांति की हवा मिस्र में भी पहुँची| गत बत्तीस वर्षों से सत्ता भोग रहे होस्नी मुबारक को भागना पड़ा| उनके विरुद् के जनक्षोभ का स्थान रहा तहरीर चौक क्रांति का संकेतस्थल बन गया| जिस फौज के दम पर मुबारक की तानाशाही चल रही थी, वही फौज तटस्थ बनी| लोगों की जीत हुई| लेकिन सत्ता में कौन है? जनप्रतिनिधि? नहीं! फौजी अधिकारियों ने ही सत्ता सम्हाली! उन्होंने चुनाव घोषित किए| लेकिन वह होगे ही इसका लोगों को भरोसा नहीं| वे पुन: क्रांति के संकेतस्थल – तहरीर चौक में – जमा हुए और उन्होंने तत्काल सत्तापरिवर्तन की मांग की| सत्ता की भी एक नशा होती है| फौजी अधिकारियों को लगा कि, दमन से आंदोलन कुचल देंगे| उन्होंने पहले पुलीस और बाद में फौज की ताकद अजमाकर देखी| इस जोर जबरदस्ती में मिस्र के पॉंच नागरिक मारे गए| लेकिन लोग उनके निश्चय पर कायम थे| फिर फौज को ही पछतावा हुआ| दो फौजी अधिकारी, जो फौज द्वारा पुरस्कृत सत्तारूढ समिति के महत्त्व के सदस्य थे, उन्होंने, इस गोलीबारी के लिए जनता की स्पष्ट क्षमा मांगी| उनमें से एक जनरल ममदोह शाहीन ने घोेषित किया कि, ‘‘हम चुनाव आगे नहीं ढकेलेंगे, यह उनका अंतिम शब्द है|’’ ‘नारेबाजी करनेवालों से डरकर हम सत्तात्याग नहीं करेंगे’ – ऐसी वल्गना, एक समय इस फौजी समिति के प्रमुख ने की थी| लेकिन वह घोषणा निरर्थक सिद्ध हुई| यह सच है कि, इस फौजी समिति के प्रमुख फील्ड मार्शल महमद हुसैन तंतावी अभी तक मौन है| लोग उस मौन का अर्थ, उनकी सत्ता छोडने की तैयारी नहीं, ऐसा लोग लगा रहे है| और इसमें लोगों की कुछ गलती है ऐसा नहीं कहा जा सकता| कारण कील्ड मार्शल तंतावी, भूतपूर्व तानाशाह होस्नी मुबारक के खास माने जाते थे| लेकिन अब समिति के अन्य दो फौजी अधिकारियों का मत बदल चुका है| उनके विरुद्ध तंतावी कुछ कर नहीं सकेगे| निश्चित किए अनुसार गत सोमवार को चुनाव हुआ| वह और छ: सप्ताह चलनेवाला है| मार्च माह में नया संविधान बनेगा और यह संक्रमण काल की फौजी सत्ता समाप्त होगी| मिस्र अरब राष्ट्रों में सर्वाधिक जनसंख्या का राष्ट्र है| एक प्राचीन संस्कृति -इस्लाम स्वीकार करने के बाद वह संस्कृति नष्ट हुई – लेकिन उसकी बिरासत उस राष्ट्र को मिली है| ट्युनेशिया की जनसंख्या डेढ करोड के से कम तो मिस्र की दस करोड के करीब| मिस्र कीघटनाओं का प्रभाव सारी अरब दुनिया में दिखाई देखा|
लिबिया का संघर्ष
मिस्र के बाद क्रांति की लपटें लिबिया में पहुँची| कर्नल गद्दाफी इस तानाशाह ने लिबिया में चालीस वर्ष सत्ता भोगी| लिबिया की जनता ने उसे भी सबक सिखाना तय किया| उसे अपनी फौजी ताकद का अहंकार था| उसने, अपनी फौजी ताकद का उपयोग कर यह विद्रोह कुचलने का पूरा प्रयास किया| नि:शस्त्र जनता के विरुद्ध केवल रनगाडे ही नहीं वायुसेना का भी उपयोग करने में उसे संकोच नहीं हुआ| और शायद वह को क्रांति कुचलने में भी सफल हो जाता| लेकिन क्रांतिकारकों की ओर से अमेरिका के नेतृत्व में नाटो की हवाई सेना खड़ी हुई| नाटो की हवाई ताकद के सामने गद्दाफी की कुछ न चली| लेकिन असकी मग्रुरी कायम रही| आखिर उसे कुत्ते की मौत मरना पड़ा| उसका शव किसी मरे हुए जानवर के समान घसीटकर ले गये| लिबिया में अभी भी नई नागरी सत्ता आना बाकी है| लेकिन वह समय बहुत दूर नहीं| नाटों के राष्ट्रों का हस्तक्षेप नि:स्वार्थ ना भी होगा, उन्हें लिबिया में के खनिज तेल की लालच निश्चित ही होगी| लेकिन उन्होंने अपनी हवाई सेना गद्दाफी के विरुद्ध सक्रिय करना, लिबिया में की फौजी तानाशाही समाप्त करने लिए उपयोगी सिद्ध हुआ, यह सर्वमान्य है|
येमेन में भी वही
इन तीन देशों में की जनता के विद्रोह के प्रतिध्वनि अन्य अरब देशों में भी गूंजे| प्रथम, येमेन के तानाशाह कर्नल अली अब्दुला सालेह को कुछ सद्बुद्धि सूझी| स्वयं की गत गद्दाफी जैसी ना हो इसलिए उसने पहले देश छोड़ा; और २३ नवंबर को सौदी अरेबिया में से घोषणा की कि, मैं गद्दी छोडने को तैयार हूँ| अर्थात् यह सद्बुद्धि एकाएक प्रकट नहीं हुई| वहॉं भी उसकी सत्ता के विरुद उग्र आंदोलन हुआ था| उसने, उसे कुचलने का प्रयास भी किया था| लेकिन गद्दाफी की तरह उसने पागलपन नहीं किया| अपने सत्ता के विरुद्ध के जन आक्रोश की कल्पना आते ही उसने अपना तैतीस वर्षों का राज समाप्त करने की लिखित गारंटी दी| तुरंत, उपाध्यक्ष के हाथों में सौंप दी| आगामी तीन माह में चुनाव कराने का आश्वासन उसने दिया है| लेकिन उसकी शर्त है कि, अभी उसे उसका राजपद भोगने दे और नई सत्ता उसके विरुद्ध कोई मुकद्दमा आदि ना चलाए| हम भारतीयों को यमन करीबी लग सकता है| कारण हमारा परिचित एडन बंदरगाह येमेन में ही है| वहीं कैद में क्रांतिकारक वासुदेव बळवंत फडके की मृत्यु हुई थी|
सीरिया में का रक्तपात
यह क्रांति की आंधी प्रारंभ में उत्तर आफ्रीका या अरबी सागर से सटे प्रदेशों तक ही मर्यादित थी| लेकिन अब यह आंधी उत्तर की आरे बढ़ रही है| भूमध्य सागर को छू गई है| अभी वह सीरिया में पूरे उफान पर है और सीरिया के फौजी तानाशाह बाशर आसद, गद्दाफी का अनुसरण कर रहे है| अब तक, कवल दो माह में इस तानाशाह ने चार हजार स्वकीयों को मौत के घाट उतारा है| उसकी यह क्रूरता देखकर, अन्य अरब राष्ट्रों को भी चिंता हो रही है| अरब लीग, यह २२ अरब राष्ट्रों का संगठन है| उसने कुछ उपाय बाशर आसद को सुझाए है| राजनयिक कैदियों को रिहा करने और शहरों में तैनात फौज को बराक में वापस भेजने के लिए कहा है| सीरिया में की स्थिति पर नज़र रखने के लिए कुछ निरीक्षक और विदेशी पत्रकारों को प्रवेश देने का भी सुझाव दिया है| इसी प्रकार, बाशर आसद अपने विरोधकों के साथ चर्चा कर मार्ग निकाले, ऐसा भी सूचना दी है| २ नवंबर २०११ को अरब लीग की यह बैठक हुई| बैठक में बाशर उपस्थित थे| उन्होंने यह सब सूचानाएँ मान्य की| लेकिन कुछ राजनयिक कैदियों को रिहा करने के सिवाय और कुछ नहीं किया| विपरीत, फौज का और अधिक ताकद के साथ उपयोग किया| अरब लीग ने फिर बाशर को सूचना की और लीग की सूचनाओं का पालन करने के लिए समयसीमा भी निश्चित कर दी| लेकिन बाशर ने अपनी राह नहीं छोडी| आखिर अरब लीग ने सीरिया को लीग से हकाल दिया और उसके विरुद्ध आर्थिक नाकाबंदी शुरू की|
निरीक्षकों का कयास है कि, बाशर आसद के दिन अब पूरे हो रहे है| कारण, अब फौज का एक हिस्सा भी आंदोलन में उतरा है| सीरिया में फौजी शिक्षा अनिवार्य है| इस कारण, विश्वविद्यालय में पढ़नेवाले विद्यार्थींयों को भी विविध शस्त्रास्त्रों का उपयोग करने की जानकारी है और ये सब विद्यार्थी सीरिया में की तानाशाही समाप्त करने के लिए ना केवल आंदोलन में शामिल हुए है, बाशर आसद के सैनिकों से भिड भी रहे हैं| अभी तक पश्चिमी राष्ट्र, लिबिया के समान इस संघर्ष में नहीं उतरे है| लेकिन अरब लीग के माध्यम से वे आंदोलकों को सहायता किए बिना नहीं रहेंगे| कारण संपूर्ण आशिया में जनतांत्रिक व्यवस्था कायम हो यह अमेरिका के साथ सब नाटों राष्ट्रों की अधिकृत भूमिका है| इसके परिणाम भी दिखाई देने लगे है| मोरोक्को में हाल ही में चुनाव लिये गये| वहॉं राजशाही है| संवैधानिक राजशाही| मोरोक्कों में लोगों को निश्चित क्या चाहिए, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है|
वसंतागम या और कुछ?
ट्युनेशिया से जनतंत्र की जो हवाऐं अरब जगत में बहने लगी है, उसे पश्चिमी चिंतकों ने अरब जगत में ‘वसंतागम’ (Arab Spring) नाम दिया है| सही है, इस क्षेत्र में तानाशाही के शिशिर की थंडी, लोगों को कुडकुडाती, उन्हें अस्वस्थ करती हवाऐं चल रहि थी| अनेक दशकों का शिशिर का वह जानलेवा जाडा अब समाप्त हो रहा है| वसंतऋतु आई है| कम से कम उसके आगमन के संकेत दिखाई दे रहे है| एक अंग्रेज कवि ने कहा है कि, ‘If winter comes can spring be far behind’ – मतलब शिशिर ऋतु आई है, तो वसंत क्या उससे बहुत पीछे होगी? शिशिर आई है, और दो माह बाद वसंत आएगी ही, ऐसा आशावाद कवि ने अपने वचन में व्यक्त किया है| लेकिन अरब जगत में वसंतागम के जो संकेत दिखाई दे रहे है, वे सही में वसंतागम की सुखद हवा की गारंटी देनेवाले है, ऐसा माने? ऐसा प्रश्न मन में निर्माण होना स्वाभाविक है|
प्रथम ट्युनेशिया का ही उदाहरण ले| वहॉं चुनाव हुए| २७१ प्रतिनिधि चुने गए| २२ नवंबर को निर्वाचित प्रतिनिधियों की पहली बैठक हुई| संक्रमणकाल के फौजी प्रशासन ने, स्वयं दूर होना मान्य किया था| लेकिन निर्वाचितों में ४१ प्रतिशत प्रतिनिधि ‘नाहदा’ इस इस्लामी संगठन के कार्यकर्ता है| स्वयं के बूते पर वे राज नहीं कर सकते| इसलिए ‘सेक्युलर’ के रूप में जिन दो पर्टिंयों की पहचान है, उनके साथ उन्होंने हाथ मिलाया है| एक पार्टी के नेता मुनीफ मारझौकी है, तो दूसरी के मुस्तफा बेन जफर| मुनीफ की पार्टी स्वयं को उदारमतवादी मानती है, तो जाफर के पार्टी की पहेचान कुछ वाम विचारों के ओर झुकी पार्टी की है| ‘नाहदा’के नेता हमादी जेबाली प्रधानमंत्री बनेंगे यह निश्चित है| तानाशाही राज में, राजनयिक कैदी के रूप में उन्होंने कारावास भी सहा है| उन्होंने गारंटी दी है कि, हम ‘भयप्रद’ इस्लामी नहीं| सही बात यह है कि, दूसरी दो पार्टिंयों के बैसाखी के सहारे उनकी सरकार चलनी है, इसकारण इस्लाम में की स्वाभाविक भयप्रदता उन्हें छोडनी ही पडेगी| वे दोनों पार्टिंयॉं उनकी शर्ते भी लादेगी| इस्लामी होते हुए भी उदारमतवादी होना यह वदतोव्याघात है| और जेबाली को यह स्पष्टीकरण इसलिए देना पड़ा कि, १३ नवंबर को अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं के सामने भाषण करते समय जेबाली ने कहा था कि, ‘‘ट्युनेशिया में एक नई संस्कृति प्रवेश कर रही है| और अल्लाह ने खैर की तो छटवी खिलाफत हो निर्माण सकती है|’’ इस्लामी पाटीं के नेताओं के अंतरंग में कौनसे विचार उफान भर रहे है, इसका संकेत देनेवाले यह उद्गार है| ‘खिलाफत’ कहने के बाद ‘खलिफा’ आता है| उसके हाथों में राजनीतिक और धार्मिक शक्ति केंद्रित होगी ही| ईसाईयों के पोप के समान खलिफा केवल सर्वश्रेष्ठ धर्मगुरु नहीं होता| प्रथम महायुद्ध समाप्त होने तक तुर्कस्थान का बादशाह खलिफा था| उसके पहले बगदाद का मतलब इराक का बादशाह| लोगों की निर्वाचित प्रतिनिधिसभा खलिफा का चुनाव नहीं करती| वह पद एक तो जन्म से प्राप्त होता है या उस पद पर धार्मिक नेताओं के संगठन की ओर से नियुक्ति की जाती है| ‘खिलाफत’की स्थापना का विचार उदारमतवादी लेागों के मन में -जिन्होंने यह जनतांत्रिक क्रांति की उनके मन में – निश्चित ही भय निर्माण करनेवाला है|
मिस्र में भी…
मिस्र में २८ नवंबर को मतदान का एक दौर समाप्त हुआ| और दो दौर बाकी है| लेकिन पहले दौर के मतदान से अंदाज व्यक्त किया जा रहा है कि, मुस्लिम ब्रदरहूड इस कट्टर इस्लामी संगठन द्वारा पुरस्कृत उम्मीदवार अधिक संख्या में चुने जाएगे| यह लेख वाचकों तक पहुँचने तक पहले दौर के मतदान के परिणाम शायद घोषित भी हो चुके होंगे| लेकिन राजनयिक विरोधकों ने मुस्लिम ब्रदरहूड के उम्मीदवारों को कम से कम ४० प्रतिशत मत मिलेंगे ऐसा अंदाज व्यक्त किया है| इस मुस्लिम ब्रदरहूड संगठन ने, मुबारक विरोधी आंदोलन में सक्रिय भाग नहीं लिया था| मुबारक के राज का समर्थन भी नहीं किया था| लेकिन आंदोलन में सक्रियता भी नहीं दिखाई थी| इस मुस्लिम ब्रदरहूड से भी अधिक कट्टर संस्था, जिसका नाम सलाफी है, उसके उम्मीदवारों को भी अच्छा मतदान होने का अंदाज है| यह सलाफी, सब प्रकार की आधुनिकता के विरुद्ध है| महिलाओं के राजनीति और सामाजिक, सार्वजनिक कार्य में के सहभाग को उनका विरोध है| दूरदर्शन आदि मनोरंजन के साधनों को भी उनका विरोध है| ट्युनेशिया के समान ही, वहॉं भी किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना नहीं त्रिशंकु अवस्था में मुस्लिम ब्रदरहूड और सलाकी का गठबंधन होने के संकेत स्पष्ट दिखाई देते है| इस गठबंधन को इजिप्त की नई संसद में ६५ प्रतिशत सिटें मिलेगी, ऐसा निरीक्षकों का अंदाज है| आश्चर्य यह है कि, तानाशाही शासन के विरोध में जिन्होंने प्राण की बाजी लगाई, वे असंगठित होने, या अन्य किन्हीं कारणों से पीछे छूट जाएगे ऐसा अंदाज है| उनकी तुलना में होस्नी मुबारक के शासनकाल में, सरकारी कृपा या अनास्था के कारण, इन दो इस्लामी संगठनों को बल मिला था, यह वस्तुस्थिति है| सही तस्वीर तो जनवरी के बाद ही स्पष्ट होगी|
भवितव्य
पहले अंदाज व्यक्त कियेनुसार हुआ तो, एक खतरा है| वह है कट्टरवादियों के हाथों में सत्ता के सूत्र जाना| फिर इन क्रांतिवादी देश में भी तालिबान सदृष्य राज दिखाई देगा| मतलब वसंत का आगमन पुन: अन्य ऋतुओं को अवसर देने के बदले शिशिरागम के ही संकेत देते रहेगा| देखे क्या होता है| लेकिन यह देखना भी उत्सुकतापूर्ण और उद्बोधक रहेगा|
– मा. गो. वैद्य
(अनुवाद : विकास कुलकर्णी)