Surat, Gujarat August 16, 2015: In an special ceremony organised by Subhamangal Foundation in Surat, Gujarat, well known Jain Priest Abhay Daivasuriswarji Maharaj Saheb and other Jain Santh’s presented Bhagavadgita written in gold plated ink to RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat.
Addressing on the occasion, RSS Sarasanghachalak said “We need to implement the values told and expressed in concept texts like Bhagavadgita. In our daily life, we need to practice the values we read in this great book Bhagavadgita”.
आज हमारी समाज शक्ति के सामने खड़ी रहने वाली शक्ति विश्व मे नहीं है – डॉ. मोहनजी भागवत
सूरत, गुजरात: शुभमंगल फाउंडेशन, सूरत, गुजरात द्वारा आयोजित कार्यक्रम मे जैनाचार्य अभय देवसुरिश्वरजी महाराज साहेब तथा अन्य संतगणों की उपस्थिति संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत को स्वर्ण अक्षर लिखित श्रीमद् भगवद गीता अर्पण की गयी. इस अवसर पर उपस्थित समुदाय को संबोधित करते हुए मोहनजी भागवत ने कहा कि भगवद गीता आदि तात्विक ग्रंथो को प्रत्यक्ष आचरण मे लाने वाले संतो ने आपको आज कहा है इससे पहले हजारो वर्षो से वो कहते आ रहे है और उनका बताया हुआ उपदेश स्वयं आचरण मे लाना यह हमको करना है.
हम लोगो के लिए संतो की अखंड परम्परा है और आगे भी रहेगी. लेकिन लाभ हमको लेना है तो आचरण करना है. हमारे धर्म, संप्रदाय, संस्कृति और परम्परा ये सभी शाश्वत सत्य पर आधारित होने के कारण इनको कोई मिटा नहीं सकता. बात है उसका आचरण करने वाले हम लोगो की. हमारी सुरक्षा तब होती है जब हम उसका आचरण करते है इस दृष्टी से हमें क्या करना है वो महाराज साहेब ने आपको बताया है. अभी मुझे भगवत गीता भेट मे मिली है उसी मे से दो-चार बाते अपनी बुद्धि के अनुसार बताता हूँ.
भगवत गीता मे जब अर्जुन को समझाने के बाद भी समझ मे नहीं आया तो विश्वरूप का दर्शन कराया तब उसकी समझ मे आया. गीता मे ग्याहरवे अध्याय मे पहेले अध्यायों का पुनरावर्तन बहुत है क्योकि अर्जुन को फिर से समझाना पड़ा. लेकिन विश्वरूप दर्शन केवल तीन लोगो को महभारत के समय मे हुए. अर्जुन ने देखा, भीष्म ने देखा और इससे पहले ध्रुष्टराष्ट्र की सभा मे भीष्म ने देखा और भीष्म के माध्यम से ध्रुष्टराष्ट्र ने देखा. क्योकि भीष्म और अर्जुन ये सारा देखने समझने के लायक बने थे.
हम अपने को इस लायक बनावे तो हमारे सारे धर्म ग्रंथो और आचार्यो का ज्ञान प्रत्यक्ष होगा नहीं तो नहीं होगा. तो गीता का पहला संदेश यह है कि भागना नहीं अर्जुन को कृष्ण ने कहाँ तुम युद्ध करो. जीवन मे कैसी भी परिस्थिति हो हमारा काम है अडग रहना, अच्छाई पर अड़े रहना. भारत पर जब-जब आक्रमण हुए तो नरमुंडो के ढेर लगे, यज्ञोपवित को तोला गया, लोगो को कहा यदि बचना है तो हमारे साथ आओ लेकिन उन्होंने मरना स्वीकार किया और अड़े रहे. अतः अपनी धर्म संस्कृति परम्परा पर अड़े रहो.
दूसरी बात ये सारा एक है दिखने मे भले अलग-अलग हो. जो भी पंथ, संप्रदाय भारत से निकला हो वो यमो एवं नियमो के आधार पर ही चलता है. आचरण का मार्ग सबका समान है. दर्शन अलग-अलग है क्योकि देखने वाले की दृष्टी अलग-अलग है. तो उस एकता को पहचान करो और दूसरी बात जो करो अच्छा करो, समय पर करो, व्यवस्थित करो, सत्यं शिवम् सुंदरम करो. प्रेम से करो और सबके प्रति सम दृष्टी रखते हुए सुख और दुख मे समान रहो. स्वयं को ठीक करो दुनियां अपने आप ठीक हो जायेगी. सात्विकता को अपने जीवन मे लाना है. यह ध्यान मे रखते हुए अपना कर्म करते रहो.
अभी महाराज साहेब ने धर्म संसद मे जो कुछ भी इच्छाये आपको बताई इसके लिए प्रयत्न सभी करेगे लेकिन सतत प्रयत्न करने का दम समाज मे है कि नहीं. वो जब समाज मे खड़ा होगा मे आपको बताता हूँ इस समाज की आज की तारीख की जो शक्ति है उसके सामने खड़ी रहने वाली शक्ति आज दुनियां मे नहीं है. ताकत तो इतनी है बस अपने हाथो से अपनी ताकत को उपयोग मे लाने की कला हम सबको सीखनी है. शिक्षापत्री हो या अन्य पंथ संप्रदाय के जो सारे विचार, अनुभव, आचरण का जो सार है वो सब यही शक्ति देता है यही कला देता है. संतगणों द्वारा बताये गए आचरण यदि अपना जीवन चले तो आप देखेगे कि 70% संकट अपने आप मुक्त हो जायेगे, शेष 30% संकट मे आप देखेगे कि आपके पीछे ईश्वरीय शक्ति लड़ रही है वो आपको निश्चित विजय दिलाने वाली है. तो आचरण की बात हम शुरू करे इतनी एक प्रार्थना करता हूँ.