फुटबॉल का अंतरराष्ट्रीय महोत्सव अभी शुरू हुआ है. फुटबॉल के विश्व कप के लिये पुरुष खिलाड़ियों का यह टूर्नामेंट ऐसा अवसर है, जब दुनियाभर के खिलाड़ी एक ही आशा, आकांक्षा और निश्चय के साथ एक जगह पर मिलते हैं. ट्रॉफी जीतने के प्रयास में हर देश की अपनी विशिष्टता, भिन्नता और इच्छा अभिव्यक्त होती है और इस प्रकार, बड़े खेल में अपनी-अपनी भूमिका निभाता हुआ हर देश उस विशाल समिष्टि अर्थात विश्व परिवार! का हिस्सा बनता है, जहां दुनिया एक साथ मिलती है.
फुटबॉल विभिन्न सभ्यताओं, महाद्वीपों और सीमाओं से परे जाकर प्रशंसकों, शौकीनों, अनुयायियों और निष्णातों को एकसूत्र में जोड़ने वाला खेल रहा है. वर्षों से प्राचीन भारत और प्राचीन ग्रीस में शासक एवं सामान्य वर्ग का बड़ा भाग इस पसंदीदा खेल का आनंद लेता रहा है. इस खेल में गेंद को पैर से बल के साथ उछाला जाता है.
फुटबॉल समत्व स्थापित करने का भी एक आयाम है- ये खेल अधिकांश देशों के सभी स्तर के समाजों में बड़ी रुचि के साथ खेला जाता है- वस्तुत: यह किसी को भी आनंद से वंचित नहीं करता. युवा, युवा शक्ति और युवा सामर्थ्य के हमारे सर्वाधिक प्रभावशाली प्रतीकों में उत्साह और समग्रता के साथ फुटबॉल खेलना विश्व के हर भाग में युवाओं की छवि का पर्याय है.
फुटबॉल का खेल गतिशीलता, ऊर्जा, इच्छा शक्ति और लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्प प्रदर्शित करता है. यह ऐसा खेल है, जिसमें लक्ष्य तक पहुंचने के लिये दृढ़ अंत: प्रेरणा और निरंतर प्रयास आवश्यक होते हैं. यह खेल गतिहीनता, ठहराव और असंगति की धारणा का खण्डन करता है- निरंतर घूमती गेंद और उसका प्रक्षेप पथ गहरे स्तर पर जीवन के प्रवाह व शक्ति के प्रतीक हैं.
हमारे लिये भारत में- हमारी सभ्यता के मूल विश्वास ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) को दोहराने के लिये हम ऐसे एक्यकारी अवसर को उत्सव के रूप में मनाते हैं- गेंद के जादू के माध्यम से फुटबॉल विश्व कप टूर्नामेंट इस सांस्कृतिक आस्था की ही अभिव्यक्ति है. यह देखना विस्मयकारी है कि एक गेंद दुनिया को किस प्रकार एक कर सकती है.
-दत्तात्रेय होसबले
सह सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक