by MG Vaidya, RSS Veteran
हमारे देश में ‘सेक्युलर’ शब्द का खूब हो-हल्ला मचा है. यह हो-हल्ला मचाने वाले, ‘सेक्युलर’ शब्द का सही अर्थ ध्यान में नहीं लेते और वह शब्द राजनीतिकप्रणाली में कैसे घुसा यह भी नहीं समझ लेते.
‘सेक्युलर’ का अर्थ
‘सेक्युलर’ शब्द का अर्थ है इहलोक से संबंधि, ऐहिक. अंग्रेजी में this-worldly. इसका परमेश्वर, अध्यात्म, परमार्थ, पारलौकिक, ईश्वर की उपासना याआराधना और उस उपासना का कर्मकांड, से संबंध नहीं. क्या कोई व्यक्ति सही में ‘सेक्युलर’ रहेगा? रह भी सकता है. लेकिन फिर वह व्यक्ति नास्तिक होगा.चार्वाक के समान या कार्ल मार्क्स के समान. चार्वाक ने कहा है :
यावज्जीवं सुखं जीवेत् ॠणं कृत्वा घृतं पिबेत् |
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत: |
मतलब जब तक जीवित है, आनंद से जीएं. चाहे तो कर्ज निकालकर घी पिएं (मतलब चैन से जीवन व्यतीत करें) चिता पर जलकर भस्म हुआ फिर लौटकर कहॉंआता है! मार्क्स ने भी धर्म को मतलब ईश्वर पर की श्रद्धा को अफीम की गोली अर्थात् मनुष्य को बेहोश करने वाली वस्तु कहा था.
लेकिन दुनिया में न चार्वाक के अनुयायी अधिक शेष है न मार्क्स के. अधिकांश संख्या परमेश्वर के अस्तित्व को मानने वालों की है. फिर कोई उसे ‘गॉड’ कहे,अथवा कोई अल्ला.
व्यक्ति ‘सेक्युलर’ नहीं होती
अपने सोनिया गांधी को ‘सेक्युलर’ कह सकेंगे? वे रोमन कॅथॉलिक है. वे नियमित चर्च जाती है या नहीं, यह मुझे पता नहीं. लेकिन वे एक बार कुंभ मेले मेंस्नान के लिए गयी थी; और एक बार गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए आयी थी, तब एक मंदिर में भी गयी थी. हमारे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों का ही वर्तन देखें.शरद पवार से पृथ्वीराज चव्हाण तक सब ने आषाढ एकादशी को, भोर में, स्नानादि से शुचिर्भूत होकर, पंढरपुर के पांडुरंग की पूजा की है. इन्हें ‘सेक्युलर’ कहसकेंगे? और सेक्युलरिझम् के अर्क हमारे लालूप्रसाद! वे तो छठ पूजा का समर्थन करते है. ये कैसे ‘सेक्युलर’? इसलिए कहता हूँ कि, सामान्यत: कोई भी व्यक्तिसेक्युलर नहीं होता. उसका किसी न किसी देवी, देवता पर विश्वास होता है.
हिंदू परंपरा
फिर ‘सेक्युलर’ क्या होता है? राज्यव्यवस्था सेक्युलर होती है. राज्यव्यवस्था का संबंध इहलोक के साथ होता है. परमात्मा, अध्यात्म, पारलौकिकता, उपासना केकर्मकांड का उससे कोई संबंध नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए, ऐसा हम भारतीयों का आग्रह होता है और वैसा व्यवहार भी होता है. यह, अंग्रेजों का राज्य हमारेदेश में आया उस समय से बना तत्त्व नहीं. बहुत प्राचीन है. कारण, हमारे देश ने, मतलब हिंदुस्थान ने, और सही में तो जिसके आधार पर इस देश को‘हिंदुस्थान’ नाम मिला, उन हिंदूओं के कारण ‘राज्य’ सेक्युलर रहा है. सम्राट हर्षवर्धन स्वयं सनातन धर्म माननेवाला हिंदू था. लेकिन वह बौद्ध और जैन पंथीयोंके प्रमुखों का भी सत्कार करता था. हिंदुओं के लिए राज्य ‘सेक्युलर’ होता है, यह संकल्पना इतनी स्वाभाविक है कि, जैसे मनुष्य को दो पॉंव रहते हैं यह बतानाआवश्यक नहीं होता. मनुष्य को दो पॉंव होने चाहिए, क्या ऐसा कोई प्रचार करता है? कारण वह होते ही है. दुर्घटना या नैसर्गिक विकृति के कारण किसी आदमी काएक या डेढ ही पॉंव रह सकता है. लेकिन यह दुर्घटना या अपवाद ही हो सकता है. यह सेक्युलर राज्यव्यवस्था की जो प्राचीन परंपरा है, उसका ही प्रतिबिंब हमारेस्वातंत्र्योत्तर संविधान में भी है. संविधान की धारा १४ और १५ देखें. धारा १४ बताती है : ‘‘राज्य किसी भी व्यक्ति को राज्य क्षेत्र में कानून के समक्ष समानताअथवा कानून का समान संरक्षण नहीं नकारेंगा.’’ और धारा १५ बताती है कि, ‘‘राज्य, केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या अथवा इनमें से किसीकारण से किसी भी नागरिक के प्रतिकूल होगा इस प्रकार भेदभाव नहीं करेंगा.’’ (संविधान के सरकारमान्य मराठी अनुवाद से मैंने यह उद्धृत किया है.) यह हिंदूपरंपरा है. इसलिए ही इरान से निर्वासित हुए पारसी हिंदुस्थान में सैकड़ों वर्षो से उनका धर्म, उनकी परंपरा और रीति-रिवाज कायम रखकर भी जीवित है. वे इरानवापस क्यों नहीं लौट सकें, इसका उत्तर मुसलमानों ने देना चाहिए.
मुसलमान और सेक्युलर राज्य
इसका अर्थ स्पष्ट है कि, ईश्वरीय, पारमार्थिक, पारलौकिक ऐसे किसी भी क्रियाकलाप की दखल राज्य नहीं लेगा. सब को इस बारे में स्वातंत्र रहेगा. ‘सेक्युलर’राज्य व्यवस्था ऐसी होती है. आज हमारे संविधान की आस्थापना में ‘सेक्युलर’ शब्द है. लेकिन वह पहले से नहीं था. वह १९७६ के आपत्काल के समय अकारण हीघुसेडा गया है. संविधान १९५० से लागू हुआ; और ‘सेक्युलर’ शब्द १९७६ में आया. क्या २६ वर्ष हमारा संविधान सेक्युलर नहीं था? राज्य का व्यवहार, पंथ,संप्रदाय, लिंग, जाति के आधार पर भेद करता था? नहीं. कारण यह हिंदुस्थान का मतलब हिंदूबहुल संख्या रहने वालों राज्य.
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