Pune July 28, 2016: RSS Sarakaryavah Suresh Bhaiyyaji Joshi addressed Shraddhanjali Sabha held to pay homage to veteran RSS Pracharak Suresh Rao Ketkar at Pune.
Addressing the gathering Bhaiyyaji Joshi said, ‘Suresh Rao Ketkar was an epitome of simplicity. Sangh Work was the only priority in his life’. Bhaiyyaji remembered the life and legacy of former RSS Sahsarakaryavah Suresh Rao Ketkar, who passed away recently due to age old illness.
Paschim Maharashtra Pranth Sanghachalak Nanasaheb Jadhav, Pune Mahanagar Sanghachalak Ravindra Vanjaravadkar were present on the dias.
‘सुरेशराव केतकर संघरूप नहीं थे, संघ ही उनका जीवन था’
पुणे – `सुरेशराव केतकर संघरूप नहीं थे, बल्कि संघ ही उनका जीवन था। जीवनाच्या अंतिम क्षणापर्यंत ते संघ जगले. एक प्रखर तेज से चमकनेवाले तेजस्वी व्यक्तित्व के तथा आदर्श व्यक्तित्व के जो मानदंड हम मानते हैं, वे सारे गुण उनमें थे। इन शब्दों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने श्रद्धांजली समर्पित की।
रा. स्व. संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. सुरेशराव केतकर को श्रद्धांजली समर्पित करने हेतु पुणे में केसरी वाडा स्थित लोकमान्य तिलक सभागृह में आयोजित सभा में वे बोल रहे थे। पश्चिम महाराष्ट्र प्रांत संघचालक नानासाहेब जाधव तथा पुणे महानगर संघचालक रवींद्र वंजारवाडकर इस श्रद्धांजली में मंच पर उपस्थित थे।
स्व. सुरेशराव केतकर के विशेष गुणों के बारे में भैय्याजी जोशी ने कहा, कि सुरेशराव का जीवन अंतिम क्षण तक संघरूप था। आदर्श व्यक्तित्व के जो मानदंड हम मानते हैं, वे सारे गुण उनके व्यक्तित्व में थे। व्यक्तिगत जीवन में सरलता की जो परिसीमा होती है, वह उनमें थी। सरलता ही उनके जीवन का तेजस्वी रूप था।
उनके बरताव में कहीं भी कृत्रिमता नहीं थी। कठोर कर्मठता, सरल व्यवहार, सबके लिए आत्मीयता, मुलायम स्वभाव इनके साथ अत्यंत कर्मठता से जीवन जीनेवाले सुरेशराव का जीवन अत्यंत विलोभनीय था। वे सबको हमेशा उत्साहित करते रहते। हमेशा कुछ सीखने की उनकी दुर्दांत इच्छाशक्ति होती थी।
समय के अनुरूप बदलनेवाले संघरचना के नए विषय उन्होंने आत्मसात किए। अंतिम क्षण तक उनकी सीखते रहने की मानसिकता कायम थी, इसकी स्मृति जगाते हुए भैय्याजी जोशी ने कहा, “ये सारे बदलाव उन्होंने अपने स्वीकृत जीवनलक्ष्य के लिए, उसके प्रति अपनी निष्ठा के लिए सीख लिए थे और वह भी नेतृत्व पर अपार विश्वास रखकर। ‘विकसित हो, अर्पित होकर जिए’ इन गीतों की पंक्तियों की तरह वे जीए।”
इसके साथ ही स्व. सुरेशजी का चलना, बोलना, गणवेश, संचलन, विचारशक्ति आदी उनके व्यक्तित्व के अंग सबको आकर्षित करनेवाले थे। उन्होंने यह भी कहा, कि गंभीर स्वभाव, मन में अत्यंत भावुकता, आत्मीयता आदी उनके स्वभाव की अन्य विशेषतांए थी।
सुरेशजी के काम मे कई बारिकीयां थी। नियोजन था। इसके बारे में स्मृतियां जगाते हुए भैय्याजी जोशी ने कहा, “मैंने उन्हें सर्वप्रथम सन् १९६९ में प्रथम वर्ष की कक्षा में देखा था। तब से मन ही मन लगता था, कि हमें सुरेशजी जैसा ही होना चाहिए। उनके परिस स्पर्श के कारण कईयों का जीवन सोना बन गया।”
रुग्णावस्था में भी वे हमेशा संघ काही विचार करते थे, यह अनुभव सभी कार्यकर्ताओं ने कई बार लिया था, यह कहते हुए भैय्याजी जोशी ने कहा, “हम हमेशा कहते है, कि संस्कार सीधे मन में गहरे तक जाना चाहिए। उसकी अनुभूति सुरेशजी की ओर देखकर, उनका अनुभव लेकर आती है। ऐसे व्यक्तित्वों का सान्निध्य प्राप्त होना, उन्हें समझना यह हमारा भाग्य है। चर्चा सुनाई देती है, कि जिनके पांव पर सर रखें, ऐसे पांव मिलना आजकल दुर्लभ हो गया है, लेकिन भाग्य से संघ में आज भी ऐसे पांव है जो ध्येयसमर्पित व्यक्तियों है और जहां विनम्र हुआ जा सकता है।” उन्होंने आह्वान किया, कि सुरेशराव केतकर जिस मार्ग पर चले, उसी मार्ग पर चलने के लिए हमें प्रयासरत रहना चाहिए।
इससे पूर्व श्रद्धांजली सभा में संजय कुलकर्णी ने उनकी स्मृतियां संजोनेवाला एक विडियो प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का सूत्रसंचालन सुधीर गाडे ने किया तथा शांतिमंत्र के साथ सभा का समापन हुआ।
हाथ में लिया हुआ काम अंत तक ले जाए बिना आराम नहीं..
हाथ में लिया हुआ काम अंत तक ले जाए बिना आराम करते हुए मैंने उन्हें नहीं देखा, यह कहते हुए भैय्याजी जोशी ने स्व. सुरेशराव केतकर के विषय में एक अविस्मरणीय किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा, ‘` जो बिल्कुल जीवंत प्रतीत हो, जो सबको प्रेरणा दे, ऐसी डॉ. हेडगेवारजी की एक प्रतिमा नागपूर कार्यालय में स्थापित करने का निर्णय हुआ। इसकी जिम्मेदारी सुरेशराव केतकर पर सौंपी गई। उन्होंने इस प्रतिमा के लिए अथक कष्ट उठाते हुए नौ बार प्रतिमा के विभिन्न नमुने पूरे देश में यात्रा कर इकठ्ठा किए और सबको दिखाए। उस अवसर पर कईयों ने उन्हें पूछा, कि इतनी भागदौड़ क्यों करते हो? तब उन्होंने कहा, कि प्रतिमा ऐसी बननी चाहिए जो सबको पसंद आएं। जब तक प्रतिमा सबको परिपूर्ण न लगें, मैं इसके लिए प्रयास करता रहूंगा। यही अनुभव डॉक्टर हेडगेवारजी की जन्मशति के समय उन पर बनाई गई फिल्म ‘केशव –संघ निर्माता’ के समय हुआ था।’