राष्ट्रीय सामाजिक-धार्मिक आयोजन परिषद्: डॉ प्रवीण तोगड़िया का सुझाव।

बड़े सामाजिक-धार्मिक आयोजन हम सभी मिलकर सुनियोजित, सुरक्षित बना सकते हैं।
Kumbh-stampede-20162
प्रयाग, 11 फरवरी, 2013: प्रयाग महाकुम्भ में दूर दूर से आये भक्त जो प्रयाग के रेलवे स्थानक पर मारे गए, वे हिन्दू थे। समाज के सभी वर्गों से थे, भारत के कई राज्यों से थे। उन की दुखद मृत्यु पर और जिन्हों ने अपने हाथ पाँव गंवाएं हैं, जखमी हुए हैं, उन के प्रति संवेदना है। राज्य सरकार कहती है – केंद्र सरकार ने पर्याप्त ट्रेनें नहीं दी; केंद्र सरकार कहती है – बहुत ट्रेनें दी, कोई हमारी गलती नहीं।  दोनों सरकारें एकमत से हिन्दू भक्तों को हो दोष दे रही हैं कि इतनी बड़ी संख्या में महाकुम्भ में आये, बहुत भीड़ हुयी इसलिए हादसा हुआ! धार्मिक टूरिझम की गाढ़ी कमाई के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी राज्यों में महाकुम्भ के विज्ञापन दिए हैं, बसों-ट्रेनों पर बड़े पोस्टर बेनर लगवाये हैं – ‘आइये महाकुम्भ आइये!’.  केंद्र सरकारने भारत के किसी भी स्थान से प्रयाग जानेवाली या प्रयाग से आनेवाली सभी ट्रेनों की टिकटों पर 10 से 25 रूपया अधिक सर चार्ज लगाया है और जो हिन्दू भक्त वहां आये थे आने-जाने की टिकटों पर यह अधिक रूपया देकर आये थे। रेलवे ने इस के बदले में उन्हें क्या अधिक सुविधाएं दी, यह प्रयाग स्थानक पर हुआ हादसा ही बताता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, हिन्दू हेल्प लाइन, कई संतों के सहयोगी शिष्य हम सभी ने भगदड़ में घायलों को सहाय करने का पुरजोर प्रयास किया, कई स्थानों पर तो सरकारी लोगों ने मदद के लिए जीने देना भी मना किया। न स्ट्रेचर थे, न दवाएँ। लेकिन अब गलती किस की इसमें जो हिन्दू भक्त मारे गए वे वापस नहीं आयेंगे। इसलिए एक-दुसरे पर दोषारोपण करने से अच्छा है कि ऐसे आयोजनों के लिए कोई कायम स्वरुप की प्रणाली बनें।
VHP Chief Dr Pravin Togadia visited hospital at Allahabad, met stampede victims
VHP Chief Dr Pravin Togadia visited hospital at Allahabad, met stampede victims
हम सभी संघटन संतों के आश्रम आदि ऐसे बड़े धार्मिक आयोजन करते आये हैं। बड़ी भीड़ एक ही स्थान पर लम्बे समय जमा न हो और धार्मिक विधि भी चलें यह सुनिश्चित करने के कई सरल मार्ग हम जानते हैं – पोलिस लाठियां इस का मार्ग नहीं। हम सभी की इसमें कुशलता, समाज के अन्य कुशल अधिकारयों की मदद इन सभी का उपयोग सरकारें ऐसे आयोजनों में कर सकती हैं। हिन्दू संघटनों को, हिन्दू साधू-संतों को ‘आतंकी’ कह कर जेल भेजने की जगह देश का भला होगा अगर सरकारें उन की मदद ऐसे कार्यक्रमों के आयोजनों में अधिकृत रीति से लें, उन के अनुभवों का उपयोग करें।
कुछ परिणामकारक मार्ग:
1. भारत सरकार सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय सामाजिक-धार्मिक आयोजन परिषद् बनाएं। अगर देश की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् तो करोड़ों नागरिकों की सामाजिक-धार्मिक सुरक्षा के लिए ऐसी परिषद् क्यों न हो? इस परिषद् में हो: भारत के सांस्कृतिक मंत्री, सभी राज्यों के सांस्कृतिक मंत्री, गृह राज्य मंत्री – केंद्र, गृह – सचिव केंद्र, गृह सचिव – सभी राज्य, निवृत्त पोलिस एवं सेना अधिकारी, कम से कम 5 साधुसंत (किसी भी राजनीतिक सोच का आधार लिए बिना उन्हें समाविष्ट किया जाय), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, हिन्दू हेल्प लाइन और अन्य ऐसे संघटनों के प्रतिनिधि (किसी भी राजनीतिक पूर्वाग्रह की बिना उन्हें इस परिषद् में सदस्य के नाते लिया जाय), अग्निशमन अधिकारी, बिजली अधिकारी (कुम्भ में हर रोज बिजली गायब हो रही है। कभी शोर्ट सर्किट के नाम पर तो कभी तेज हवा के नाम पर। दूर दूर से आये थके हारे भक्तों को अपरिचित स्थान पर भीड़ में अँधेरे का सामना करना पद रहा है!), समाज में उपलब्ध परिवहन, दूरसंचार विशेषज्ञ (3 दिन से प्रयाग में 3-4 करोड़ लोग होने के कारण मोबाइल फोन के नेटवर्क ‘जाम होकर कोई भी संपर्क ठीक से नहीं हो प् रहा है। भगदड़ में मदद भेजने के लिए भी फोन नहीं लग रहे थे।), वैद्यकीय सम्पूर्ण सेवा – डॉक्टर्स, प्रशिक्षित परिचारिका, प्राथमिक उपचार संसाधन एवं केंद्र  चलाने के लिए स्टाफ, दवाइयां आदि के प्रबंध के लिए कुशल लोग, कूड़ा-कचरा व्यवस्थापन के अधिकारी (कुम्भ जैसे लम्बे चनेवाले भीड़ भरे आयोजनों में केवल कचरे के कारण कई बीमारियाँ फैलती हैं।), जल के प्रबंधक, कला एवं संस्कृति के विशेषज्ञ  आदि। मीडिया से भी कोई जिम्मेदार प्रतिनिधि इस परिषद् में हो ताकि किसी भी समय गलत या अफवाहें फैलाने वाला रिपोर्टिंग कोई न करें। इन सभी के अतिरिक्त कई अन्य सदस्य भी इस परिषद् में होना जरुरी हैं, किंतु अभी इतने से आरम्भ तो हो।
2. परिषद् में सभी सदयों की और उन के द्वारा उन से सम्बंधित क्षेत्रों / विभागों की प्राथमिक जिम्मेदारियाँ और समय सीमाएं तय की जाय। बड़े सामाजिक-धार्मिक आयोजन निर्विघ हो इस लिए केवल आपदा प्रबंधन विभाग से काम नहीं बनेगा, इन आयोजनों में आये लोगों की हर जरुरत का ध्यान रखा जाएगा तो ही प्रणालियाँ चलेगी। इन सभी के लिए तय बजेट हो जिसे सभी कामों के लिए पारदर्शिता के साथ और किसी भी भ्रष्टाचार के बिना ठीक समय पर वितरित किया जाय। इस के ऑडिट के लिए सरकार में न हो ऐसे ऑडिटर हो।
3. राष्ट्रीय सामाजिक-धार्मिक आयोजन परिषद् का कार्य सुचारू रूप से नियोजित हो इस के लिए सभी ऐसे सामाजिक-धार्मिक आयोजनों का, उन के स्थानों का, उन के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक महत्त्व का, उन में आज आनेवाली समस्याओं का अध्ययन करने हेतु भारत के कई विश्वविद्यालय आगे आ सकते हैं। इतिहास, तत्त्वज्ञान , स्थापत्यशास्त्र, अभियांत्रिकी आदि अनेक विभागों के विद्यार्थियों के समूह प्रकल्प के रूप में विविध सामाजिक-धार्मिक आयोजनों पर अनुसंधान कर अपने रिपोर्ट दे सकते हैं जिन का आधार लिए उचित सहाय एवं विशेष प्रणालियाँ बन सकें। ऐसे अध्ययन, उन के लिए होनेवाला प्रवास, उन पर आगे किया जानेवाला काम इस के लिए भारत के उद्योग अपना धन योगदान में दे सकते हैं ताकि सरकारों पर या भक्तोंपर इस का बोझ न आये।
4. इस परिषद् के हर सदस्य को उन का कार्य ठीक से समझाकर देना और फिर उस के लिए उन्हें आवश्यक प्रणालियाँ (सिस्टिम) उपलब्ध कराना ये जिम्मेदारियां सभी सरकारों की हैं। तभी आयोजनों के लिए उत्तम सुरक्षित व्यवस्था बनेगी। आज कल हिन्दू धार्मिक आयोजनों का मजाक उड़ाना और उन्हें अनावश्यक करार देना यह ‘फेशन’ बनी है। इस कारण से सरकारें भी हिन्दू भक्तों के प्रति उदासीन होकर उन की सुविधाओं को दुर्लक्षित कर रही हैं। राष्ट्रीय सामाजिक-धार्मिक आयोजन परिषद् द्वारा सभी व्यवस्थाएं ठीक रखना यह केवल सभी सरकारों की राष्ट्रीय जिम्मेदारी ही नहीं, उन के साथ हम सभी की सांस्कृतिक प्रतिबद्धता भी है। महाकुम्भ, हर वर्ष आने वाले पुष्कर और अन्य  कई मेलें, श्राद्ध पक्ष में होने वाली पवित्र नदियों पर भीड़, छट पूजा , गणेश और दुर्गा पूजा, अमरनाथ – वैष्णोदेवी- चार धाम यात्राएं, नर्मदा परिक्रमा  एवं कई ऐसे एनी सामाजिक-धार्मिक आयोजन ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। केवल ‘टूरिझम’ की कमाई के लिए नहीं,  हमारी राष्ट्रीय संस्कृति सहेजे रखने के लिए उनमें सम्मिलित देशी विदेशी भक्तों की सुविधा और सुरक्षा हमारा सभी का उत्तरदायित्व है।
5. हाज, कार्निवल के लिए कितनी मुफ्त सुविधाएं और हिन्दुओं के साथ धार्मिक भेदभाव क्यों, यह प्रश्न लेकर हम संघर्ष कर सकते हैं, किंतु यह समय संघर्ष में व्यस्त करने से देश का भला होगा अगर सभी सरकारें हमारे जैसे संघटनों  के, संतों के  सहयोग से और समाज के अनेक घटकों के सहभाग से विधायक पद्धतियाँ, प्रणालियाँ भारत के सामाजिक-धार्मिक आयोजनों के लिए विकसित करें। सामाजिक-धार्मिक शब्द में सरकारों को ‘धार्मिक’ शब्द से हिन्दू होने के कारण ‘एलर्जी’ हो तो ‘सामाजिक-सांस्कृतिक’ कहें! मुद्दा सुविधाजनक, निर्विघ्न और सुरक्षित आयोजनों का है।

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