लखनऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक अनन्त रामचन्द्र गोखले का रविवार प्रातः में लखनऊ स्थित संघ कार्यालय ‘भारती भवन’ में निधन हो गया। वे 96 वर्ष के थे। संघ परिवार के लोग इन्हें ‘गोखले जी’ के नाम से पुकारते थे। ये लम्बे समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे।
23 सितम्बर, 1918 को मध्यप्रदेश के खण्डवा में जन्में स्व0 गोखले का विद्यार्थी जीवन में ही संघ से जुड़ाव हो गया। 1938 में धंतोली शाखा से संघ का स्वयंसेवक बने स्व0 गोखले ने इसी वर्ष इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास की थी। इसी दौरान इन्हें नागपुर के रेशम बाग संघ स्थान पर तात्कालिक सरसंघचालक डा0 केशव राव बलिराम हेडगेवार के सम्पर्क में आये और उनसे राष्ट्रसेवा की प्रेरणा ली। डा0 हेडगेवार से मुलाकात के बाद स्व0 गोखले एक स्वयंसेवक के रुप में सक्रिय रुप से भागीदारी निभाना शुरु कर दी। डा. हेडगेवार के निधन के बाद 1940 में स्व0 गोखले को नागपुर के अम्बाझरी तालाब के पास के मैदान में तीन दिवसीय तरुण शिविर में जाने का अवसर मिला। यहां तत्कालिन सरसंघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर का बौद्धिक सुनने के बाद स्व0 गोखले ने संघ के प्रचारक के रुप में काम करने का निश्चय किया। इसके बाद इन्होंने संघ के अनेक प्रचारकों और बुद्धिजीवियांे से सम्पर्क कर अपनी मंशा बतायी और 1942 में संघ के प्रचारक बने।
1942 में कानपुर से स्व0 गोखले ने एक नई पारी की शुरुआत की। अपने दायित्वांे का निर्वहन करते हुए इन्होंने पं0 दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, सुन्दर सिंह भण्डारी, बैरिस्टर नरेन्द्र सिंह सरीखे निष्ठावान और राष्ट्रभक्त स्वयंसेवकों का निर्माण करने में अग्रणी भूमिका निभायी। स्व0 गोखले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चैथे सरसंघचालक प्रो0 राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) के संघ शिक्षा वर्ग में शिक्षक होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। 1942 से 1951 तक कानपुर में संघ कार्य को विस्तार देने के बाद 1954 में स्व0 गोखले लखनऊ आ गए। 1955 से 1958 तक उड़ीसा के कटक और 1956 से 1973 तक दिल्ली में भी इन्होंने संघ कार्य को गति दिया। आपात काल में इनका केन्द्र नागपुर रहा। मध्य भारत, महाकौशल और विदर्भ का काम देखने वाले स्व0 गोखले को एक बार फिर वर्ष 1978 में उत्तर प्रदेश के लिए भेजा गया।
वर्ष 1998 तक 80 वसंत पार कर चुके स्व0 गोखले की शरीर ने अब साथ देना छोड़ दिया था। बढ़ती उम्र और थकता शरीर संघ को गतिशील करने में आड़े आने लगा था। इस वजह से प्रवास सम्बन्धित दिक्कतें आने लगीं थी। इसलिए इन्हें लोकहित प्रकाशन लखनऊ का से पुस्तक प्रकाशन की जिम्मेवारी मिली। इस दौरान इन्होंने 125 पुस्तकों को तैयार कराया। इसके लिए आवश्यक सामग्रियांे का एकत्रीकरण किया, लेखकों से सम्पर्क कर लेख लिखवाये और उन्हें सुसज्जित कर पुस्तकों का रूप देने में जुटे रहे। जब चलने-फिरने में कुछ अधिक ही दिक्कतें आने लगी तो ये लखनऊ स्थित संघ कार्यालय भारती भवन में रहने लगे। बावजुद इसके मन में न तो निराशा का भाव था और न ही खुद से कोई शिकायत। स्व0 गोखले अब भी अपने कमरे से लेकर कपड़ो तक की सफाई में किसी अन्य का सहयोग लेना मुनासिब नहीं समझा।ऐसे दृढ़ निश्चयी, कर्मठी, निष्ठावान, अनुशासन प्रिय मनीषी स्व0 गोखले रविवार की सुबह शान्त हो गए और अपने जीवन के विभिन्न पहुलुओं से संघ के हर स्वयंसेवकों को नई दिशा दे गए।
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