New Delhi July 24, 2016 : RSS Sarasanghachalak Mohan Bhagwat addressed Akhil Bharatiya Rashtriya Shaikshik Mahasangh’s SHIKSHAK BHUSHAN award distribution Ceremony on Sunday evening at New Delhi.
Details will be updated later.
शिक्षा के साथ विद्या का समन्वय लेकर चलें शिक्षक: डॉ. मोहनभागवत
नई दिल्ली, 24 जुलाई राट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने सिविक सेंटर स्थिति केदारनाथसाहनी आडिटोरियम में अखिल भारतीय ‘शिक्षा भूषण’ शिक्षक सम्मानसमारोह में शिक्षकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शिक्षा में परम्पराचलनी चाहिए, शिक्षक को शिक्षा व्यवस्था के साथ विद्या और संस्कारोंकी परम्परा को भी साथ लेकर चलना चाहिए। सभी विद्यालय अच्छी हीशिक्षा छात्रों को देते हैं फिर भी चोरी डकैती, अपराध आदि के समाचारआज टीवी और अखबारों में देखने को मिल रहे है। तो कमी कहां है?सर्वप्रथम बच्चे मां फिर पिता बाद में अध्यापक के पास सीखते हैं।बच्चों के माता पिता के साथ अधिक समय रहने के कारण माता–पिताकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इसके लिए पहले माता–पिता को शिक्षक कीतरह बनना पड़ेगा साथ ही शिक्षक को भी छात्र की माता तथा पिता काभाव अंगीकार करना चाहिए। शिक्षा जगत में जो शिक्षा मिलती हैउसको तय करने का विवेक शिक्षक में रहता है। शिक्षक को चली आरही शिक्षा व्यवस्था के अतिरिक्त अपनी ओर से अलग से चरित्र निर्माणके संस्कार छात्रों में डालने पड़ेंगे। लेकिन यह भी सत्य है कि हम जोसुनते हैं वह नहीं सीखते और जो दिखता है वह शीघ्र सीख जाते हैं।आज सिखाने वालों में जो दिखना चाहिए वह नहीं दिखता और जो नहींदिखना चाहिए वह दिख रहा है। इसलिए शिक्षकों को स्वयं अपनेकृतत्व का उदाहरण बनकर दिखाना चाहिए तभी वह छात्रों को सहीदिषा दे सकेंगे। हमारे सम्मुख ऐसे शिक्षा भूषण पुरस्कार से पुरस्कृततीन उदाहरण यहां है, आज के कार्यक्रम का उद्देष्य भी यही है कि ऐसेश्री दीनानाथ बतरा जी, डॉ. प्रभाकर भानू दास जी और सुश्री मंजूबलवंत बहालकर जैसे शिक्षकों से प्रेरणा लेकर और शिक्षक भी ऐसेउदाहरण बन कर समाज को संस्कारित कर फिर से चरित्रवान समाजखड़ा करें।
कार्यक्रम के विशेष अतिथि देव संस्कृति विष्वविद्यालय के कुलपतितथा गायत्री परिवार के अंतर्राष्ट्रीय प्रमुख डॉ. प्रणव पांड्या ने बतायाकि हर व्यक्ति को जीवन भर सीखना और सिखाना चाहिए। शिक्षाजीवन के मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। शिक्षा एक एकांगी चीज हैजब तक उसमें विद्या न जुड़ी हो। आज शिक्षा अच्छा पैकेज देने कामाध्यम बन गई है। पैसे के बल पर डिग्रियां बांटने वाले संस्थानों कीबाढ़ आ गई है। 1991 के बाद उदारीकरण की नीति बनाते समय हमनेशिक्षा नीति के बारे में कुछ सोचा नहीं। इसका परिणाम आज अपने हीदेष के विरुद्ध नारे लगाते हुए छात्रों के रूप में दिख रहा है। हम क्यापहनते हैं इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता फर्क पड़ता है हमारा चिंतन कैसाहै। शिक्षक ही बच्चों का भाग्य विधाता होता है, शिक्षा व्यवस्था जैसीभी चलती रहे, लेकिन शिक्षक को अपना कर्तव्य बोध नहीं छोड़नाचाहिए।
अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ द्वारा आयोजित ‘शिक्षा भूषण’शिक्षक सम्मान समारोह में शिक्षा बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठशिक्षाविद् श्री दीनानाथ बतरा, डॉ. प्रभाकर भानूदास मांडे, सुश्री मंजूबलवंत राव महालकर को शिक्षा डॉ. मोहन भागवत तथा डॉ. प्रणवपांड्या ने ‘शिक्षा भूषण’सम्मान से सम्मानित किया। मंचस्थ अतिथियोंमें उनके साथ श्री महेन्द्र कपूर, के. नरहरि, प्रोफेसर जे.पी. सिंहल, श्रीजयभगवान गोयल उपस्थित थे।