By MG Vaidya, RSS former Senior Functionary
गुजरात और हिमाचल प्रदेश इन दो राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम २० दिसंबर
को घोषित हुए. हिमाचल प्रदेश में चुनाव नवंबर माह में ही हुए थे. लेकिन मतगणना तब नहीं हुई. गुजरात विधानसभा का चुनाव १३ और १७ दिसंबर को हुआ और २० दिसंबर को दोनों चुनावों के परिणाम घोषित हुए.
सत्तापरिवर्तन
हिमाचल प्रदेश में सत्तापरिवर्तन हुआ. वहॉं गत पॉंच वर्ष से भाजपा की सरकार थी. लेकिन २०१२ में भाजपा का पराभव हुआ. कॉंग्रेस की सत्ता वहॉं स्थापन होगी यह निश्चित हुआ. लेकिन इस चुनाव के परिणाम की चर्चा देश के राजनीतिक क्षेत्र में अथवा प्रसारमाध्यमों में नहीं हुई. वह राज्य बहुत ही छोटा है. लोकसभा में, ५४३ सदस्यों में से, उस राज्य के हिस्से केवल चार सिटें आती है. जनमत सामान्यत: परिवर्तन चाहता है. हिमाचल की जनता, किसी पार्टी को लगातार पॉंच वर्ष से अधिक समय सत्ता में नहीं रहने देती, ऐसा कहा जा सकता है. इस कारण हिमाचल प्रदेश के चुनाव का किसे भी अचरज नहीं हुआ.
गुजरात की विशेषता
गुजरात की स्थिति भिन्न है. वहॉं १९९५ से भाजपा की सत्ता है. २०१२ में फिर भाजपा ही सत्ता में आ रही है. मतलब मुख्यमंत्री पद पर लगातार पॉंचवी बार भाजपा का ही आदमी विराजमान हो रहा है. यह सच है कि, मुख्यमंत्री पद पर का आदमी बदला,लेकिन सत्तारूढ पार्टी नहीं बदली. वस्तुत: २०१२ में गुजरात भाजपा के सामने बड़ा आव्हान था. २००२ और २००७ के विधानसभा के चुनाव में, २००२ में गुजरात में हुए दंगे, और उन दंगों में मुसलमानों की हुई प्राणहानि, यह भाजपा विरोधी पार्टिंयों के लिए – सही में कॉंग्रेस पार्टी के लिए – महत्त्व का मुद्दा था. कॉंग्रेसाध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्रभाई मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहकर, भाजपा विरोधी प्रचार को पैना बनाने का प्रयास किया था. आज भी २००२ के दंगों का भूत जगाया जाता है. लेकिन, उसका गुजरात की बहुसंख्य जनता पर कोई परिणाम नहीं होता. गुजरात के बाहर के लोग और प्रसारमाध्यम इन दंगों के लिए नरेन्द्र मोदी को ही जिम्मेदार मानते है. उन्होंने ही दंगे भड़काए, ऐसा उनका आरोप रहता है. लेकिन वह गुजरात की जनता को मान्य नहीं. गुजरात के ही गोध्रा स्टेशन पर २००२ में ५७ निरपराध कारसेवकों को वहॉं के मुसलमानों ने, योजनाबद्ध तरीके से, जिंदा जलाकर मार डाला, उसकी वह तीव्र प्रतिक्रिया थी. क्रिया की उपेक्षा कर प्रतिक्रिया को ही आघातलक्ष्य बनाना, यह चालाकी गुजराती जनता को मान्य नहीं. गुजराती जनता की वह तीव्र प्रतिक्रिया उत्स्फूर्त थी. श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिक्खों का हत्याकांड हुआ; और उसमें तीन हजार निरपराध सिक्खों की हत्या की गई,उसका नेतृत्व कॉंग्रेस के नेताओं ने किया था. हरकिसनलाल भगत, जगदीश टायटलर, सज्जन कुमार जैसे कॉंग्रेस के बड़े नेता हिंसक जमाव का नेतृत्व कर रहे थे. उन्हें बेशरमी से उकसा रहे थे. गुजरात में ऐसा नहीं हुआ. इतना कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री मोदी ने शीघ्रता से बचाव कार्य नहीं किया. सामान्यत: शांतताप्रिय समझा जाने वाला गुजराती समाज ऐसा उग्र होकर क्यों भड़क उठा,इसका आकलन कॉंग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को आज भी नहीं हुआ है. इस कारण मोदी और भाजपा मुस्लिम विरोधी है, यह उनके प्रचार की रट लगी रहती है. २०१२ में वह कुछ क्षीण हुई. लेकिन, जब तक कॉंग्रेस गोध्रा हत्याकांड को विस्मृति में ढकेलकर केवल हिंदुओं ने किए प्रतिकार पर ही आग उगलते रहेगी, तब तक गुजरात में कॉंग्रेस को सत्ता मिलने की आशा नहीं.
केशुभाई का आव्हान
इस परिस्थिति के कारण, गुजरात में भाजपा को हराकर कॉंग्रेस सत्ता में आएगी, ऐसा मुझे कभी लगा ही नहीं. भाजपा या नरेन्द्रभाई के सामने, सही आव्हान था केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी का. केशुभाई दो बार गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य है. उन्होंने २०१२ के चुनाव में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में की भाजपा सरकार को सत्ता से हटाने का बीडा उठाया. मुझे यह बहुत बड़ा खतरा लगा. संघ के कुछ पुराने कार्यकर्ता केशुभाई के साथ है इसकी मुझे जानकारी है. संघ के जो आनुषंगिक संगठन है, जिन्हें सामान्यत: संघ परिवार के घटक संगठन माना जाता है, उनमें से कुछ मोदी से नाराज थे. मुझे ऐसी भी जानकारी मिली है कि, उनमें से कुछ के श्रेष्ठ नेताओं ने केशुभाई के पक्ष में प्रचार भी किया है. सामान्य स्वयंसेवक के लिए जटिल स्थिति निर्माण हुई थी. वैसे, संघ के संविधान के अनुसार स्वयंसेवक किसी भी सियासी पार्टी में जा सकता है. पदाधिकारी भी बन सकता है. शर्त एक ही है कि, वह संघ में पदाधिकारी नहीं रहेगा. गुजरात के स्वयंसेवकों ने अपनी विवेकबुद्धि से इस जटिल स्थिति का हल ढूंढा. २०१२ के चुनाव में गुजरात में भाजपा का पराभव होता, तो उसके विपरित परिणाम भारत की राजनीति पर होते. ऐसा न हो इसलिए स्वयंसेवकों ने अपने विवेक का उपयोग किया. वे व्यक्तिनिष्ठा से ऊपर ऊठे. व्यक्ति के बारे में की नाराजी भी वे भूले और व्यक्ति की अपेक्षा संगठन श्रेष्ठ होता है, यह तत्त्व जो संघ में अंत:करण पर अंकित किया जाता है, उसका उन्होंने स्मरण रखा और भाजपा के पक्ष में मतदान किया. संगठन तो व्यक्तियों से ही बनता है. लेकिन प्रधान क्या और गौण क्या, इसका विवेक रखना होता है. आद्यशंकराचार्य के विख्यात ‘षट्पदी’ स्तोत्र का दृष्टान्त देना हो तो कह सकते है कि ‘लहर सागर की होती है, सागर लहर से नहीं बनता.’ शंकराचार्य के शब्द है ‘‘सामुद्रो हि तरंग: क्वचन समुद्रो न तारंग:’’.
अंदाज गलत साबित हुए
मतदान के पंद्रह दिन पूर्व, गुजरात में केशुभाई के साथ के, मेरे परिचय के एक पुराने कार्यकर्ता का मुझे दूरध्वनि आया था. उसने कहा, सौराष्ट्र और कच्छ में विधानसभा की जो ५९ सिटें हैं, उनमें से कम से २० हम निश्चित जितेंगे. हमारा प्रयास तो पचास प्रतिशत सिट जितने का होगा. लेकिन किसी भी स्थिति में हम २० से कम पर नहीं रहेंगे. परिणाम घोषित होने तक मुझे भी लग रहा था कि, गुजरात परिवर्तन पार्टी को कम से कम ८ से १० सिंटें तो मिलेगी ही. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उसे केवल दो ही सिटें मिली. गुजरात परिवर्तन पार्टी चुनाव मैदान में न होती, तो भाजपा के सिटों की संख्या १२५ से अधिक होती.
मोदी का महत्त्व
इसका अर्थ नरेन्द्रभाई ने किए काम को गौण सिद्ध करना नहीं है. उन्होंने अपने दस वर्षों के सत्ता काल में भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन दिया. किसी अन्य राज्य में नहीं है, ऐसा गुजरात का विकास किया. पूँजीनिवेश के लिए अनुकूल वातावरण निर्माण किया. अल्पसंख्य मुसलमानों के बीच भी अपने प्रति विश्वास निर्माण किया. वह इतना कि, देवबंद के दारूल उलम इस कट्टर धर्मपीठ के नियोजित कुलगुरु मौलाना वास्तानवी ने भी मोदी की प्रशंसा की. उन्होंने कहा था कि, मोदी ने किए विकास कार्य से मुसलमानों को भी लाभ हुआ है. मोदी की इस प्रशंसा के कारण ही, वास्तानवी को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था. मुसलमानों का मोदी और साथ ही भाजपा के बारे में का तीव्र विरोध कम होने और विश्वास बढ़ने का चित्र २०१२ के चुनाव में स्पष्ट दिखाई दिया. जिन मतदारसंघों में मुसलमानों की जनसंख्या ३० से ६० प्रतिशत है मतलब जिन मतदारसंघों में वे प्रभाव डाल सकते है ऐसे ९ विधानसभा मतदारसंघों में से सात में भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुए है. जमालपुर-खादिया इस साठ प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या की बस्ती के मतदारसंघ में भी भाजपा का हिंदू उम्मीदवार विजयी हुआ है. मोदी के विकास कार्य की गति और स्वरूप से भारत के उद्योगपति तो प्रभावित हुए ही है, उनके साथ पश्चिम यूरोप के देश भी प्रभावित हुए है. इसलिए मैं कहता हूँ कि, भाजपा की इस चुनाव में की जीत में मोदी के काम का भी बहुत बड़ा योगदान है. इस बार भाजपा ने जीती ११५ सिटों का मूल्य कम से कम १४० सिटों के बराबर है. गुजरात परिवर्तन पार्टी के विरुद्ध ११५ सिटें जीतना सामान्य बात नहीं. ‘गुपपा’ मैदान में नहीं होती तो कॉंग्रेस अपनी २००७ की ५९ सिटें भी नहीं बचा पाती.
अकाल चर्चा
मतगणना के चलते ही दूरदर्शन के तीन-चार चॅनेल के प्रतिनिधि मुझे मिलने आये. मैंने उन्हें बताया कि २००७ में ११७ सिटें मिली थी. अबकी बार अधिक से अधिक एक-दो कम होगी. शायद एक-दो बढ़ भी सकती है. लेकिन २००७ की तुलना में भाजपा बहुत नीचे नहीं गिरेगी. और बाद में उनके प्रश्न भाजपा के भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के मुद्दे पर स्थिर हुए. मैंने इसके पहले भी बताया था और २० दिसंबर को भी पुनरुक्ति कर बताया कि, २०१४ में भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, यह चर्चा २०१२ में अकालिक (प्रि-मॅच्युअर) और अप्रस्तुत (इररेलेव्हन्ट) है. गुजरात विधानसभा का चुनाव इसके लिए नहीं हुआ था. मैंने यह भी बताया कि, भाजपा के पास उस पद के लिए योग्य व्यक्तियों की कमी नहीं है. जो तीन-चार नाम उसके लिए योग्य है,उनमें मोदी का भी समावेश है. गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम कुछ भी आता, -मतलब २००७ की तुलना में सात सिटें कम भी आती – तो भी मोदी की योग्यता में कोई फर्क नहीं पड़ता. मोदी को भाजपा अभी ही अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करे, ऐसा कहने वाले भाजपा में नहीं, ऐसा नहीं. राम जेठमलानी ने पहले ही यह कहा है और वे राज्यसभा में भाजपा के सदस्य है. कुछ दिन पूर्व दिल्ली के एक विख्यात भाजपा कार्यकर्ता मुझसे मिलकर गये. उस समय मतगणना नहीं हुई थी, तब की यह बात है. वे भी कह रहे थे कि, २०१४ का लोकसभा का चुनाव मोदी के नेतृत्व में ही लड़ा जाना चाहिए. मैंने उनके मत से असहमति व्यक्त की. दूरदर्शन के चॅनेल को भी मैंने बताया कि, २०१३ में भाजपा के शक्ति केन्द्र के अनेक राज्यों जैसे : दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक आदि के विधानसभा के चुनाव है. उनके परिणाम देखकर ही भाजपा अपनी २०१४ की रणनीति तैयार करेगी. कभी-कभी तो मुझे संदेह होता है कि, भाजपा की विरोधी पार्टिंयों को ही मोदी को समय से पहले प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में तो दिलचस्पी नहीं? मोदी की उम्मीदवारी घोषित हुई, तो मुस्लिमों के एकमुश्त वोट हमें मिलेंगे; और भाजपा की आज की सहयोगी जद (यु) भी भाजपा से दूर जाएगी, तथा उसे नए सहयोगी जुटाने में दिक्कत होगी ऐसा तो उनका गणित नहीं? मेरा संदेह गलत भी हो सकता है. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि, भाजपा अभी ही अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करे. सही समय पर ही इसकी घोषणा करे. समय से पहले घोषणा करने से कोई लाभ नहीं होगा. भाजपा के नेतृत्व की आज यही भूमिका है. विशिष्ट प्रसारमाध्यम मोदी के भाषणों से अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ निकालने का प्रयास करेगे ही. ‘गुजरात के मतदाताओं ने देश के लिए कार्य करने का मार्ग प्रशस्त किया है’ ऐसा नरेन्द्रभाई ने, विजय का आनंद व्यक्त करने के लिए एकत्र जनता के सामने कहने का समाचार प्रकाशित हुआ है. ‘देश के लिए कार्य करना’ मतलब प्रधानमंत्री बनना ऐसा सुविधाजनक अर्थ, जिन्हें निकालना होगा, वे खुशी से निकाले, लेकिन भाजपा अपनी भूमिका न बदले, ऐसा मुझे लगता है.
सारांश यह कि, २०१२ में जो स्थिति थी, वह ध्यान में लेते हुए, मोदी के नेतृत्व में गुजरात भाजपा ने हासिल की जीत सही में प्रशंसनीय है. इसके लिए मैं नरेन्द्रभाई का मन:पूर्वक अभिनंदन करता हूँ. कठिन आव्हानों का मुकाबला कर उन्होंने यह जीत हासिल की है.
– मा. गो. वैद्य