नई दिल्ली : राष्ट्र को सुदृढ मातृत्व का आधार देने के लिए तथा सेविकाओं के सर्वांगींण विकास के लिए राष्ट्र सेविका समिति का प्रशिक्षण वर्ग सरस्वती शिशु मंदिर हरिनगर, नई दिल्ली में 15 दिनों तक चलने के बाद ३ जून को इसका समापन समारोह संपन्न हुआ।

इसका उद्देश्य राष्ट्र की आधार शक्ति नारी को चेतना युक्त व संगठित रूप के लिए खड़ा करना तथा उन्हें प्रभावी संस्कारयुक्त बनाकर उनके माध्यम से महिलाओं में आत्मविश्‍वास व राष्ट्रभक्ति की भावना का निर्माण कर समाज व राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना रहा।
कार्यक्रम की मुख्य अध्यक्षा के नाते समाज सेविका तथा ‘पिंग मैगजीन’ की संपादिका नीलम प्रताप सिंह रूड़ी जी उपस्थित थी| राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख कार्यवाहिका माननीय शांताक्का जी, मुख्य वक्ता के नाते अखिल भारतीय सहकार्यवाहिका माननीय अलका ताई इनामदार जी, शाहदरा विभाग की संरक्षिका श्रीमती महेशलता बाली जी, दिल्ली की सहकार्यवाहिका श्रीमती सुनीता भाटिया जी तथा श्रीमती राधा मेहता जी मंच पर उपस्थित थी।
श्रीमती महेशलता बाली जी ने अपने उदबोधन में कहा की- 19 मई सायं से शुरु हुए इस कार्यक्रम में शिक्षार्थियों की संख्या 136 और सेविकाएं, शिक्षिकाएं और प्रबन्धिकाएं इस वर्ग में रहीं। भारत की पुत्रियों के सामने सतीत्व का आदर्श रखकर उन्हें संगठित शक्ति के रूप मे खड़ा करना, उन्हें संस्कार देना, उनमें राष्ट्रभक्ति की भावना का निर्माण करना ही इस वर्ग का उद्देश्य है। इनमें आत्मबल जागृत करके शारीरिक रूप से विकास करना जो सेविकाओं ने आपके सामने दिखाया है। सेविकाओं ने समाज की छोटी-छोटी ज्वलंत समस्याओं के ऊपर जो नाटिकाएं हैं उन्हें करके दिखाया है। जिनमें बौद्धिक, आत्मरक्षा के कार्यक्रम रहते हैं। जैसे भारत का गौरवशाली इतिहास, समाज की सुदृढता का आधार परिवार, पर्यावरण सरंक्षण, भारतीय वैज्ञानिक पद्धति।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य माननीय इन्द्रेश जी का मार्गदर्शन भी इन्हें प्राप्त हुआ। प्रतिदिन चर्चा की जाती थी जिसमें सभी सेविकाएं भाग लेती थीं। जिनके मुख्य विषय स्त्री सौन्दर्य की सुध। दुर्बल स्त्री समर्थ परिवार तथा राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकती। परिवार का हर व्यक्ति अच्छा नागरिक बने, राष्ट्रप्रेमी बने इसकी जिम्मेदारी स्त्री की है।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता माननीय अलका ताई जी ने वर्ग समापन समारोह में बोलते हुए कहा, पिछले 15 दिन से लगातार व्रतस्थ जीवन में हम प्रशिक्षण पर रहे थे। घर में जो बच्चियां सूर्योदय से पूर्व कभी उठी ही नहीं थीं उन्होंने ब्रह्ममुहूर्त का अनुभव लिया है। घर में जिन बच्चियों को मां ने बड़े लाड-प्यार से कभी किसी काम को हाथ लगाने भी नहीं दिया होगा ऐसी बच्चियां अपना सब काम स्वयं कर रहीं थीं। अपना काम करना ही नहीं अपितु दूसरों को मदद करने की भी शिक्षा और एक सहजीवन का एक प्रशिक्षण वह यहां पा रहीं थी। सुबह दो घंटे, शाम दो घंटे शारीरिक व्यायाम का भी प्रशिक्षण होता था। दो घंटे शारीरिक व्यायाम करने के बाद फिद डेढ़ घंटे बौद्धिक अवधि के लिए बैठा जाता था। सेविकाओं ने यह भी बताया कि दो-चार दिन के बाद इस परिश्रम की हमें आदत हो गई, बौद्धिक के विषय में हमें हमारी रुचि क्या है, यह हमें मालूम होने लगा। अनेक विषय जो हमने अपने शिक्षा क्रम में कभी सुने ही नहीं थे, ऐसे विषय यहां हमें सुनने को मिले।


माननीय अलका ताई जी ने बताया कि यह वर्ग का समापन तो हैं परन्तु अपने कार्य का तो यह आरम्भ है। प्रशिक्षण वर्ग ही राष्ट्र सेविका समिति का कार्यक्रम नहीं होता। यह तो एक नैमित्तिक और अभी का प्रशिक्षण देने के लिए दिया गया एक अवसर होता है। राष्ट्र सेविका समिति का कार्य तो शाखा में बढ़ता है। हम कहते हैं कि हर व्यक्ति का जो व्यक्तित्व विकास होना है, उसका जो चरित्र निर्माण होना है, उसके लिए एक पवित्र स्थान है, एक कार्यशाला है ‘‘शाखा’’ और इस शाखा में मिट्टी के साथ खेलते-खेलते जो संस्कार मिलते हैं, साथ-साथ में गीत गाते-गाते जो संस्कार मिलते हैं उन्हीं संस्कारों से समाज के प्रति हृदय में स्पंदन उत्पन्न होता है। समाज का अवलोकन करने की हमें एक आदत हो जाती है कि आज समाज की आवश्यकता क्या है और समाज के लिए मैं क्या कर सकती हूँ इस विचारधारा को अपने मन में संजोए आज हम यहां से जाने वाले हैं।
तो सच में आज समाज की आवश्यकता क्या है। एक तरफ हम देखें तो समाज में आज आर्थिक सुलभता दिखाई देती है। यूरोप की भांति यहां भी एक-एक घर में चार-चार कारें दिखाई देती हैं। आज 30-35 साल के युवक भी दो तीन लाख वेतन पाते हैं उनकी शादी होती है तो वहां बहु भी नौकरी करने वाली आती है उसकी आय भी हर महीने एक डेढ़ लाख होती है। तो हम ऐसी क्यों चिन्ता करें कि हमारे देश की स्थिति बिगड़ी हुई है क्या, हमें कुछ करने की आवश्कता है क्या, राष्ट्र सेवा आवश्यक है क्या|

हमारे राष्ट्र में सम्पति भरपूर है, ऐसा हमें लगे तो उसमें दोष हमारा नहीं है दोष हमारी दृष्टि का है। क्योंकि हमने सूक्ष्म दृष्टि से समाज का अवलोकन नहीं किया है। हां, आज जरूर हर नगर, महानगर, कोसमोपालिटिन सिटी ऐसी हो गई हैं जहां लाखों कमाने वाले लोग रहते हैं। जिनके मां बाप सालों तक अपने बेटे बेटियों, पोते पोतियों की राह देखते रहते हैं कि वे कब घर आएंगे। गावों में माइग्रेशन हो गया है वहां कोई खेती करना चाहता ही नहीं। इसका परिणाम सामने है कि आज चावल का दाम क्या है, सब्जी का दाम क्या है दूध का दाम क्या है। पैट्रोल के दाम क्या हैं यह सब हम देखते हैं तो पाते हैं कि एक असंतुलन सा देश में आज पैदा हो रहा है। देश में जीडीपी का कैलकुलेशन करना ठीक नहीं है, हमारे समाज के लिए यह बिल्कुल उपयुक्त नहीं है।

आज महिलाएं बाहर जाकर अर्थार्जन करती हैं अच्छी बात है अगर आवश्कता है, लेकिन वास्तव में आवश्यकता है क्या इसको सोचना चाहिए। आज पश्‍चिमी देशों में बच्चों में अपने परिवार के बारे में असुरक्षा के भाव उत्पन्न हो रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम नहीं कि उनके माता पिता कब तक साथ रहेंगे। भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था की वहां तारीफ होती है कि उनके यहां भी ऐसी व्यवस्था रही होती। अत: हमें महानगरों में रहते हुए अपनी संयुक्त परिवार प्रणाली को नहीं छोड़ना चाहिए| नहीं तो यहां भी परिवार विघटन की समस्याएं बढ़ेंगी। अत: आज आवश्यकता इस बात की है किस प्रकार हम देश में पैदा हुए इस आर्थिक असंतुलन को दूर करें तथा नारी शक्ति को ऐसे कार्यक्रमों द्वारा सशक्त बनाया जाए जिससे वे अपने परिवार तथा समाज को एकजुट रख सकें।
दिल्ली प्रान्त की प्रचारिका पूनम जी का सानिध्य भी बालिकाओं को इस वर्ग में प्राप्त हुआ। वर्ग के समापन समारोह का मंच संचालन श्रीमती सरिता मेहरा ने किया। वर्ग समापन कार्यक्रम में प्रक्षिणार्थी सेविकाओं के अभिभावकों के साथ नगर के गण्यमान व्यक्ति उपस्थित थे।

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