सरकार्यवाह श्री भैय्या जी जोशी का श्रीलंका के तमिल पीड़ितों की समस्याओं पर वक्तव्य
16 मार्च, 2013। जामडोली, जयपुर।
गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यू.एन.एच.आर.सी.) की जेनेवा बैठक से ठीक पहले हमने यह वक्तव्य प्रसारित किया था कि श्रीलंका सरकार को अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठा उनके उचित पुनर्वास, सुरक्षा एवं राजनैतिक अधिकारों को भी सुनिश्चित करे। मैं आज यह कहने को बाध्य हूँ कि एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा हो गया है।
मैं इस अवसर पर श्रीलंका सरकार को यह पुनर्स्मरण कराना चाहता हूँ कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एल.टी.टी.ई.) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आँख मुंदकर नहीं बैठ सकती, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोजगार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
हमारा यह सुनिश्चित मत है कि श्रीलंका में स्थायी शांति तभी संभव है जब उस देश की सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रान्तों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। हम भारत सरकार से यह आग्रह करते हैं कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनैतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।
हमें ध्यान रखना ही होगा कि हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित यह पडोसी
द्वीप, जिसके भारतवर्ष से हजारों वर्ष पुराने रिश्ते है, कहीं वैश्विक शक्तियों के भू-सामरिक खेल का मोहरा बन कर हिन्द महासागर का युद्ध क्षेत्र न बन जाए। उस देश के सिंहली व तमिलों के बीच की खाई को ओर अधिक बढाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए। इसी में ही श्रीलंका के संकट का स्थायी हल निहित है।