राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा
16-18 मार्च, 2012   नागपुर
प्रस्ताव 1

भारत में आज भूमि अधिकार, राजनैतिक अधिकार, बाँध तथा नदी-जल का बँटवारा, एक राज्य से दूसरे राज्य में लोगों का स्थानांतर, जाति,जनजाति और संप्रदाय के आधार पर विभिन्न गुटों में हो रहे संघर्ष इत्यादि विविध विषयों पर जन अभियान खड़े होते हुए दिखाई दे रहे हैं। इन अभियानों में कुछ निहित स्वार्थी तत्वों के कृत्यों के कारण समाज के विभिन्न घटकों में जो वैमनस्य बढ़ रहा है उस पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिंता व्यक्त करती है।

अ. भा. प्र. स. कहना चाहती है कि परिपक्व राजनीतिज्ञों द्वारा ऐसे विषयों को अत्यंत सावधानी तथा संवेदनशीलता से संभालना चाहिये। समाज की एकता और एकात्मता को सर्वोपरि मानकर ही ऐसे विषयों का हल ढूँढना चाहिये। दुर्दैव से अनुभव में यही आ रहा है कि क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए जनता की भावनाओं को उछाला जा रहा है, जिसके कारण समाज के एकत्व को क्षति पहुँच रही है।

जन प्रबोधन और जागरण में प्रचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। ऐसे विषयों में कुछ प्रचार माध्यमों की सनसनी फैलाने की प्रवृत्ति न केवल इन अभियानों को नुकसान पहुँचाएगी वरन सामाजिक तानेबाने पर भी उसका विपरीत असर होगा। ऐसे अभियानों का नेतृत्व करने वाले सामाजिक संगठनों का यह गुरुतर दायित्व बनता है कि वे विभेदकारी प्रवृत्तियों को हावी न होने दें तथा निहित स्वार्थ रखने वाले अन्तर्बाह्य तत्वों को इन अभियानों का लाभ न उठाने दें, ताकि वे सामाजिक सामंजस्य तथा राष्ट्रीय एकता के वातावरण को हानि न पहुँचा सकें। प्रतिनिधि सभा प्रचार माध्यमों और सामाजिक संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं का आवाहन करती है कि वे ऐसे अभियानों को सही दिशा प्रदान करने में रचनात्मक भूमिका निभाएँ।

ऐसे अभियानों को जन्म देने वाले लगभग सभी विषयों में दोनों पक्षों की ओर से वास्तविक व्यथाएँ तथा शिकायतें हो सकती हैं। प्रतिनिधि सभा ऐसे अभियानों के नेताओं तथा सहभागी जनता का आवाहन करती है कि वे समाज की व्यापक एकता और एकात्मता को अपनी दृष्टि से ओझल न होने दें। अपनी माँगों का समर्थन करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपने वक्तव्यों तथा कृत्यों से हमारे सामाजिक तानेबाने में दरार न आये तथा राष्ट्रीय एकता के सूत्र कमजोर न हों।

अ.भा.प्र.स. इसे गंभीर चिंता का विषय मानती है कि ’साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा रोक विधेयक’ तथा अल्पसंख्यक आरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्र सरकार की कार्यवाहियाँ समाज के विभिन्न घटकों में विभेद और वैमनस्य पैदा करने का कारण सिद्ध हो रही हैं। केन्द्र तथा कुछ राज्य सरकारों द्वारा अन्य पिछडे़ वर्गों के 27 प्रतिशत आरक्षण में से 4.5 प्रतिशत हिस्सा अल्पसंख्यकों के लिए निकालने के संविधान-विरोधी निर्णय को पूरे राष्ट्र ने नकारना चाहिये। प्रतिनिधि सभा जोर देकर कहना चाहती है कि राष्ट्र की नीतियों का निर्धारण तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए नहीं वरन एक जन – एक राष्ट्र के सिद्धान्त के आधार पर होना चाहिये।

अ. भा. प्रतिनिधि सभा समस्त देशवासियों का और विशेष रूप से स्वयंसेवकों का आवाहन करती है कि क्षुद्र स्वार्थों के लिए सामाजिक एकता को नष्ट करने के कुछ समाज-घटकों के प्रयासों को परास्त करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।

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