Dattatreya Hosabale, RSS Sah Sarakaryavah

Bhopal भोपाल, १८ दिसंबर २०१२ : डेढ़ सौ साल पहले स्वामी विवेकानंद ने भारत में शिक्षा के स्वरुप सम्बन्धी बहुत ही गहराई से अध्ययन किया था | राष्ट्रीय चेतना, चरित्र निर्माण और मनुष्य निर्माण ही शिक्षा का उद्देश्य हो ऐसा उनका मानना था| सामान्य लोगों को शिक्षा और उत्थान उनका स्वप्न था| उसे जानकर हर कोई अपने अपने क्षेत्र में उसे साकार करने का प्रयत्न करें | जैसा पहले दीप समान भारत था, उसे पुनः बनाएं, ऐसा आवाहन  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह श्री. दत्तात्रय होसबले ने किया |

Dattatreya Hosabale, RSS Sah Sarakaryavah

मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी द्वारा सृजनात्मक लेखन के लिए दिए जाने बाले “डा. शंकर दयाल शर्मा सृजन सम्मान समारोह” के अवसर पर रवीन्द्र भवन भोपाल में  मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए श्री. दत्तात्रय होसबले ने “शिक्षा का वर्त्तमान परिदृश्य और स्वामी विवेकानंद के शिक्षा संबंधी विचारों की प्रासंगिकता” विषय पर अपने विचार व्यक्त किये | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री. लक्ष्मीकांत शर्मा उच्च शिक्षा व संस्कृति मंत्री म.प्र. शासन, विशिष्ट अतिथि श्री. मोहनलाल छीपा कुलसचिव अटल विहारी वाजपेयी हिन्दी विश्व विद्यालय थे | अध्यक्षता श्री. जे.एस. कंसोटिया सचिव म.प्र. शासन उच्च शिक्षा विभाग ने की | इस अवसर पर वर्ष २०१० और २०११ में सृजनात्मक लेखन के लिए विद्वान लेखकों को शाल श्रीफल, प्रशस्तिपत्र तथा एकत्तीस हजार रुपये का मानधन चेक भी प्रदान किया गया | चार पुस्तकों का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा हुआ|

श्री. होसबले ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का नाम लेने भर से हिम्मत आती है, चित्र देखने से प्रेरणा मिलती है, उनके विचारों का अध्ययन करने से यह प्रेरणा जीवन समर्पण की बन जाती है | भारत के नौजवानों को ऐसी ही शिक्षा मिले यही विवेकानंद चाहते थे | भारत के उन्ही मेरु पुरुष की यह जन्म सार्धशताव्दी है | उनके जन्म को डेढ़ सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं |
भारत के ऊर्ध्वमुखी आध्यात्मिक चिंतन से युक्त, रक्षात्मक वृत्ति से मुक्त होकर स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्रीय चेतना का मार्गदर्शन दिया तथा भौतिक संस्कृति पर आक्रमण किया | स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात शिक्षा नीति बनाने के लिए डा. कोठारी आयोग बना | उसने शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखा कि भारत का भविष्य उसके विद्यालयों में निर्मित हो रहा है | विद्यालयों से विवेकवान भावी पीढ़ी कैसे बने यह सत्ता शासन का दायित्व है | चीन ने प्रयास किया, व्यापक योजना बनाई | एक पुस्तक लिखी गई | nation at school (विद्यालय में राष्ट्र)| यह वाक्य शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है | प्रकारांतर से यही स्वामी जी के उदगार को प्रगट करता है |
भारत स्वतंत्र होते ही कई शिक्षा आयोग बने | डा. कोठारी, डा. राधाकृष्णन, मुदलियार आयोग आदि | उन लोगों द्वारा १९६३ में दी गई रिपोर्ट के आधार पर १९६६ में शिक्षा नीति बनी | १९८६ में दोबारा नीति निर्धारण हुआ | अमरीका के राष्ट्रपति थामस जेफरसन से पूछा गया कि उन्हें मृत्यु के बाद लोग कैसे याद रखें ? आपकी क्या इच्छा है ? उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में याद रखने को नहीं कहा | उनका जबाब था कि मुझे बर्जीनिया यूनिवर्सिटी के संस्थापक के रूप में याद रखा जाए | यह यूनिवर्सिटी उन्होंने राष्ट्रपति पद से हटने के बाद निर्मित की थी | उनकी समाधि पर उनकी इच्छानुसार यही अंकित किया गया | इसी प्रकार भारत के पूर्व राष्ट्रपति ने भी पद से मुक्त होने के बाद शिक्षक बनने की इच्छा व्यक्त की |
इतना सब जानते हुए भी हमारे यहाँ शिक्षा की स्थिति क्या है ? प्रख्यात शिक्षाविद अमर्त्य सेन ने लिखा है कि प्राथमिक शिक्षा के विषय में नेहरू उदासीन थे | उन्होंने उस विषय को कोई महत्व नहीं दिया | ५००० वर्ष प्राचीन राष्ट्र होते हुए भी शिक्षा के क्षेत्र में विफलता के कई कारण हैं | शिक्षा संबंधी राय देने हेतु गठित आयोगों के निष्कर्षों में कोई कमी नहीं है | उन्हें लागू करने की इच्छा में कमी रही | पर्याप्त राशि की व्यवस्था नहीं की गई | उन्होंने कहा कि ६ प्रतिशत जीएनपी रखना चाहिए | यह नहीं हो सका | जबाबदेही की कमी रही |
स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान शिक्षा संस्थाओं को खडा करने का प्रयत्न हुआ | स्वदेशी विद्यालय प्रारम्भ हुए | प. मदन मोहन मालवीय ने सराहनीय प्रयत्न कर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी प्रारंभ की | महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक और आगरकर ने इस दिशा में यथेष्ट योगदान दिया | दक्षिण भारत में भी रंगाहरी ने कार्य किया | जन सामान्य के लिए भारतीय चिंतन के राष्ट्रभाषा प्रधान विद्यालय उस दौर में खड़े हुए | बिना किसी शासकीय अनुदान के संसाधनहीन स्थिति में समाज के सहयोग से यह कार्य संपन्न हुए | किन्तु आजादी के बाद जो होना चाहिए था वह नहीं हुआ |
स्वामी विवेकानंद विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के विरोधी नहीं थे | उन्होंने अपने छोटे भाई महेंद्र नाथ दत्ता को इन विषयों का अध्ययन करने के लिए विदेश जाने को प्रेरित किया | वे नहीं पढ पाए ये अलग विषय है | देशवासी जापान जाकर इंजीनियरिंग पढ़े, उन्होंने यह आकांक्षा व्यक्त की थी | आज इंजीनियरिंग की पढाई के लिए ९५ प्रतिशत अंकों की वाध्यता क्यों ? औसत सामान्य विद्यार्थी क्यों नहीं पढ़ सकता ? दरअसल शिक्षा जैसे गंभीर विषय को बहुत ही हलके से लिया गया है | तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री ने कहा कि कला, समाज शास्त्र, भूगोल आदि अनुत्पादक विषयों की आवश्यकता ही क्या है | इन्हें पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए | ऐसे शिक्षा मंत्री को क्या कहें ? डिग्री अर्थात जॉब का पासपोर्ट जिससे धन कमाना, धन कमाकर मौजमस्ती करना, अर्थात अनैतिकता |
देश में धर्म की अध्यात्म की बात नहीं हो सकती क्योंकि धर्म निरपेक्षता है| यह धर्म निरपेक्षता है क्या इसे किसी ने स्पष्ट नहीं किया| किन्तु इसके चलते जीवन मूल्य मत सिखाओ| एस व्ही चव्हान कमेटी ने राय दी कि पाठ्यपुस्तकों में सभी धर्मों के जीवन मूल्य सिखाना चाहिए| इस पर से भगवीकरण का हल्ला कर दिया गया| कहा गया कि क्या धर्माचार्य बनाना चाहते हो? राजनीति, पत्रकारिता, व्यापार कहीं धर्म नहीं चाहिए | जबकि कृष्ण ने कहा कि काम और युद्ध में भी धर्म चाहिए| दुनिया में जो दीपक हमारे मनीषियों ने पिछले पांच हजार वर्षों में स्थापित किया, अब उसकी जरूरत नहीं | कहा जाता है कि धर्म नहीं चाहिए| धर्म मत सिखाओ|
केरल में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किये गये संस्कृत विश्वविद्यालय का स्वरुप वामपंथी सरकार ने बदल दिया | कहा गया की संस्कृत अगड़ों की भाषा है, हिन्दुओं की भाषा है | स्वामी विवेकानंद जी कहते थे, संस्कृत में ज्ञान का भण्डार है | चरित्र निर्माण, मनुष्य निर्माण शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए | किन्तु आज मनी मेकिंग शिक्षा दी जा रही है, मैन-मेंकिंग नहीं | चरित्र, आत्मविश्वास और श्रद्धा सिखाने के क्या पाठ्यक्रम हैं ? श्रद्धा तोड़ो यही आधुनिकता | श्रद्धाविहीन समाज यही शिक्षा है क्या, इसका विचार करने की आवश्यकता |
शिक्षक शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन के वाहक हैं | घर में माता पिता बच्चे के रोल मोडल होते हैं, स्कूल में शिक्षक | अतः समग्र भूमिका शिक्षक की है | शिक्षक अगली पीढी निर्माण करता है, अतः उसका अत्यंत महत्व है, गौरवपूर्ण स्थान है | किन्तु आज शिक्षक बनना प्राथमिकता नहीं होता | किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब नहीं मिला तो शिक्षक बन जाओ |
स्वामी जी कहते थे कि मनुष्य के अंतर में स्थित पूर्णता की अभिव्यक्ति शिक्षा है | मनुष्य में देवत्व है, वह अमृतपुत्र है, पाप की संतान नहीं | भारत के उपनिषदों ने इस देवत्व को अनुभव कराया | यदि दीप को लोहे की पेटी में रख दिया जाए तो रोशनी कहाँ | उसका अनावरण करने पर ही प्रकाश बाहर आयेगा | इस साधना में वाधा है, एकाग्रता का अभाव |
एक बार अमरीका में स्वामी विवेकानंद ने कुछ बच्चों को पिस्तौल से गुब्बारों पर निशाना लगाते देखा | उन्होंने भी यह करने की इच्छा व्यक्त की | बच्चों ने उपहास किया कि आपसे नहीं होगा | किन्तु स्वामी जी ने लगातार तीन निशाने अचूक लगाकर तीन गुब्बारे फोड़ दिए | बच्चों ने आश्चर्य से कहा कि आप तो बड़े माहिर हो | स्वामी जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने तो पहली बार पिस्तौल को हाथ में लिया है | बच्चों ने हैरत से पूछा कि फिर आपने यह कैसे किया | स्वामी जी ने उत्तर दिया- एकाग्रता के बल पर | बच्चों ने फिर पूछा कि यह एकाग्रता कैसे मिली, तो उन्होंने जबाब दिया, चरित्र के बल पर | यही शिक्षा होना चाहिए | मनुष्य निर्माण में यह महत्वपूर्ण है | पर हमारे यहाँ लोग कहेंगे कि फिर बच्चों को विद्यालय में क्यों, आश्रम में भेजो | ये पाठ्यक्रम के विषय नहीं हैं |
आत्मा में अनंत शक्ति है, सब ज्ञान अपने अन्दर है | जैसे एक पौधा लगाएं तो वह अनुकूल वातावरण में स्वयं बढ़ता हुआ वृक्ष बन जाता है, वही बालक के विषय में है | एकाग्रता सफलता की कुंजी है | दो सभ्यताएं प्राचीन मानी जाती हैं | यूनानी और हिन्दू | यूनान के लोगों ने कला, साहित्य, संगीत आदि भौतिक विषयों में प्रगति की, तो भारत में योग आध्यात्म आदि अंतर्जगत की साधना हुई और उसमें पारंगत हो गए | यूनानी सभ्यता लुप्त हो गई | हिन्दू संस्कृति आज भी कायम है | किन्तु आज व्रह्मचर्य कहना ही मुश्किल हो गया है | डर्बिन यूनिवर्सिटी के स्टोर में कंडोम रखने पड़ते हैं | अमरीका तो अमरीका है|  हमारे यहाँ दिल्ली यूनिवर्सिटी में आन्दोलन हुआ कि लड़का लड़की साथ रहेंगे | पाठ्यक्रम क्या, क़ानून क्या, परिक्षा क्या, मोरेलिटी क्या, गन कल्चर क्या, आज नहीं सोचेंगे तो गाँव गाँव यही हालत बनेगी | १०० साल पहले स्वामी जी ने आग्रह पूर्वक कहा था, परिवेश के साथ नहीं जोड़ेंगे तो स्वार्थी लोगों का निर्माण होगा |
कर्नाटक में एक आईएएस अधिकारी अपने परिवार के साथ रविवार की छुट्टी मनाने गाँव की तरफ गए | बच्चों ने एक खेत में पेड़ पर घोंसला देखकर उसे घर ले चलने की जिद्द की | अधिकारी ने बच्चों का दिल रखने को अपना ड्राईवर घोंसला लेने भेजा | खेत में काम करते बच्चे से ड्राईवर ने वह घोंसला माँगा किन्तु बच्चे ने इनकार कर दिया | १०-१५ रुपये का लालच देने पर भी वह वालक तैयार नही हुआ तो अधिकारी महोदय स्वयं उसके पास पहुंचे और जबरदस्ती घोंसला ले जाने की धमकी दी | उस बालक ने जबाब दिया की मुझे मारकर ही घोंसला ले जा पाओगे | अधिकारी को हैरानी हुई तो उन्होंने उससे इसका कारण पूछा | बालक ने जबाब दिया कि घोंसले में चिड़िया के बच्चे हैं | शाम को जब इनकी माँ आयेगी तो वह कितनी दुखी होगी ? आप तो इस घोंसले को अपने घर ले जाकर रख दोगे | वहां बच्चे रोयेंगे, यहाँ उनकी माँ | आईएएस चुपचाप वापस हो गए | बाद में उन्होंने खुद इस घटना का खुलासा उस बालक की प्रशंसा के रूप में एक समाचार पत्र में सम्पादक के नाम पत्र लिखकर किया | इसे कहते हैं परिवेश के साथ सम्बन्ध जोड़ना | पर्यावरण की शिक्षा अलग से देने की जरूरत नहीं पड़ती | जैसे उस गाँव के बालक को कभी नहीं मिली | यही स्वामी जी का कथन है |
शिष्य का गुरु गृह वास आदर्श स्थिति माना जाता था | गुरू का जीवन ज्वाजल्यमान अग्नि के समान | शिष्य के लिए रोल मोडल | जिस विषय को पढ़ाते उसके पूर्ण अधिकारी | चरित्रहीनता दूर दूर तक नहीं | विद्यार्थी के प्रति विशुद्ध प्रेम | आज भी यही शिक्षक बनने की आधार शिला है | शिक्षक को भी जीवन भर विद्यार्थी रहना चाहिए | आज प्रोफेसरों को पचास हजार से एक लाख रुपये वेतन  मिलता हैं | मैंने एक प्रोफ़ेसर से पूछा कि आप कितने ग्रन्थ खरीदते हैं | उन्होंने कहा, अध्ययन छूटा तो पढाई भी बंद | आज शिक्षक के नोट्स से विद्यार्थी की नोटबुक तक, वहां से परीक्षा में उत्तर पुस्तिका तक कलम से लिखे शव्दों की यात्रा चलती है | उनका मस्तिष्क में प्रवेश गौण है |
स्वामी विवेकानंद ने मातृभाषा के बारे में कहा कि विज्ञान, विधि, चिकित्सा की शिक्षा मातृभाषा में क्यों नहीं दी जा सकती ? स्त्री शिक्षा के बारे में कहा कि उसे इंटलेक्चुअल बनाओ पर प्यूरिटी की कीमत पर नहीं | मनुष्य निर्माण, चरित्र निर्माण का आधार धर्म- आध्यात्म | शिक्षा केवल कुछ लोगों के लिए नहीं | चांडालों को भी शिक्षा, केवल व्राह्मणों को नहीं | सुशिक्षित लोगों के लिए कहा, जब तक लाखों लोग अज्ञान के अन्धकार में हैं और आप ध्यान नहीं दे रहे, तो मै ऐसे शिक्षित लोगों को द्रोही कहूँगा | डेढ़ सौ साल पहले एक सन्यासी ने इतनी गहराई से अध्ययन किया था | सामान्य लोगों की शिक्षा और उत्थान उनका स्वप्न था | अपने अपने क्षेत्र में उसे साकार करने का प्रयत्न करें | जैसा पहले दीप समान भारत था, उसे पुनः बनाएं |
चीन के एक राजदूत चूसी ने कहा था कि भारत ने बिना एक भी सैनिक भेजे दो हजार वर्षों तक चीन पर अपना वर्चस्व स्थापित रखा | बिना किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर या साधन के यह हुआ था | झोंपड़ी में रहने बालों के भी मन समृद्ध थे, यह शिक्षा से ही तो हुआ, यह कहते हुए श्री. होसबले जी  आज ऐसी ही शिक्षा की जरुरत प्रतिबिंबित की|

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